‌‌‌देश में हो क्या रहा है, खोपड़ सीधा है दिमाग घूम रहा है

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बक्सर खबर। माउथ मीडिया : चौक पर दहाड़े मार-मार बतकुच्चन गुरू सवाल पर सवाल दागे जा रहे थे। लोग उनकी बाते सुन रहे थे। कोई जवाब नहीं दे रहा था। एकाध युवक बोल रहे थे। बोल क्या रहे थे। सवाल कर रहे थे। जितने सवाल, गुरु के बोलबचन उतने उग्र। हांलाकि उग्र बोल, वाणी का संतुलन बिगाड़ देते है। वह भाषा आवेष की हो जाती है। लेकिन, बतकुच्चन गुरू की यही खासियत है। अंदर उनके जो हो। अपनी भाषा में संतुलन बनाए रखते हैं।

मैं भी उनकी तरफ बढ़ चला। वे बोले जा रहे थे। दिल्ली, हैदराबाद और बिहार ही नहीं हर जगह हैवान हैं। हमको तो समझ में नहीं आता। सड़क पर धरना देने वाले मनई सब कहां से आता है। जहां विरोध जताने वाले ससुर इतने हैं। उहां दुष्कर्म करे वाले कहां रहते हैं। शहर के गली-गली में समाजसेवी पल रहे है। तो ससुर इ लूट-पाट करे वाले कहां से आवे हैं। आवे हैं तो उ कहां जावे हैं। उ सबन के कौन पनाह देवे है। इतने में एक ने कहा। गुरू हमे तो लगता है, सब के सब वहीं हैं। समय देख के चोला बदल लेते हैं। इतना सुनते ही बतकुच्चन गुरू बोले। हमहु के कबहु-कबहु अइसन बुझात है। जौन मनई के हम उत्पीड़न के मुकदमा में पैरवी करत देखे थे। व मिला जोर-जोर से चौक पर नारी के सम्मान, हम हैं मैदान में, चिल्ला रहा था। पास में खड़े एक ने कहा लोग जिम्मेवार हैं। अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते।]

बतकुच्चन गुरू उखड़ गए। लगे सबको धोने। यहां के लोगन क जबान बहुते लंबा हौ। घरे माई और भाई से भिड़ के आवे हैं। चौक पर पहुंचते देश के समस्या निपटावे लगते हैं। इ हमरा देश के विशेषता हौ। यहां जौन तोहे मिलेंगे। उ यहीं से दिल्ली का समस्या निपटा देंगे। दिल्ली शब्द जबान पर आते ही बतकुच्चन गुरू खामोश हो गए। कुछ देर रुककर बोले। उहां जौन हो रहा है। व सरवा दिमागे घूमा दिया है। कवनो कहता है, अच्छा है। कवनो कहता है बूरा है। पहले सब नेतवन कहता था। कुछ ना किया। अब कह रहा है धर्म बांट दिया। कवनो कहता है पिआज महंगा गई, धंधा ठंड़ा गया, अर्थव्यवस्था हील रही है। इका मतबल इ हुआ कि सब गड़बड़ हो रहा है। इतना बोल बतकुच्चन गुरू खामोश हुए और अपनी राह चल पड़े। लेकिन, उनकी चेहरे पर चिंता की रेखाएं दिख रहीं थी। हमने भी उनको नहीं टोका। जाने दिया शायद कुछ चिंतन कर रहे हों।

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