धर्म और कर्म का समन्वय ही सनातन का मूल: पौराणिक जी 

0
89

रामरेखा घाट स्थित रामेश्वर नाथ मंदिर परिसर में धर्म कथा का तीसरा दिन सम्पन्न                                 बक्सर खबर। सर्वजन कल्याण सेवा समिति, सिद्धाश्रम धाम द्वारा आयोजित 17वां धर्म आयोजन रविवार को अपने तीसरे दिन में रामरेखा घाट स्थित रामेश्वर नाथ मंदिर परिसर में श्रद्धा, भक्ति और धर्मचिंतन के भाव से संपन्न हुआ। धर्मकथा के दौरान कथावाचक आचार्य कृष्णानंद शास्त्री उपाख्य पौराणिक जी महाराज ने स्पष्ट रूप से कहा कि वर्ण और आश्रम सनातन धर्म के आधार स्तंभ हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास ये चार आश्रम मनुष्य जीवन की दिशा और उद्देश्य तय करते हैं। कथा में बताया गया कि धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि कर्म से जुड़ा हुआ है। हर वर्ण का कर्म ही उसका धर्म है। यदि कोई वर्ण अपने निर्धारित कर्मों को छोड़कर अन्य वर्णों के कर्म करने लगे, तो वह अधर्म कहलाता है और समाज में अव्यवस्था फैलती है।

कथावाचक पौराणिक जी ने महाभारत के प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि जब अर्जुन युद्ध से पीछे हटना चाहते थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें यह स्मरण कराया कि वे क्षत्रिय हैं और युद्ध करना उनका धर्म है। श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि “स्वधर्म पालन ही मोक्ष का मार्ग है”। कथा में बताया गया कि धर्म युद्ध वह होता है, जिसमें अत्याचार, अनीति, भ्रष्टाचार और असभ्यता को समाप्त कर न्याय, नीति और सभ्यता की स्थापना होती है। धर्म युद्ध के माध्यम से ही समाज में सदाचार और शांति का साम्राज्य स्थापित किया जा सकता है।

रामेश्वर नाथ मंदिर परिसर में कथा सुनती महिलाएं

आचार्य कृष्णानंद शास्त्री ने कहा कि आज समाज में वर्णाश्रम धर्म की अनदेखी के कारण मानव समाज, दानव प्रवृत्ति की ओर बढ़ रहा है। यदि सभी अपने वर्ण और आश्रम के अनुरूप कर्म करें, तो समाज में पुनः मानव मूल्यों की पुनर्स्थापना संभव है। इस प्रसंग में मार्कंडेय पुराण का उल्लेख करते हुए बताया गया कि हर वर्ण को उसके अनुसार कर्म करना चाहिए। अन्य वर्णों का कर्म करना पाप है और इससे समाज में अधर्म फैलता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here