काम ही नहीं नाम भी बोलता : डा. शशांक

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बक्सर खबर : पत्रकारिता में कुछ लोग पहचान बनाने के लिए आते हैं। कुछ व्यवस्था को बदलने का दम रखते हैं। शशांक जब पत्रकार बने तो उनका नाम गोपाल उपाध्याय था। शायद कम ही लोग इस सच्चाई को जानते हों। बाद में उनका नाम बदला और वे शशांक शेखर बन गए। इनकी कहानी कम दिलचस्प नहीं है। डुमरांव से शुरु इनका सफर बक्सर पहुंचा। अब वे यहीं के होकर रह गए हैं। एक नहीं अनेक बैनर के लिए काम किया और आज वे जिले के अगली पंक्ति के पत्रकारों में शमिल हैं। इनकी पहचान आम जन से लेकर बिरादरी में दबंग छवि वाली है। एक विशेष गुण भी है, अपनों के बीच खुले मन से सबकी बात सुनते हैं। किसी बात का मलाल नहीं करते। जिसके कारण वे जहां से चले उससे आगे निकलते गए। कभी पीछे मूड कर नहीं देखा। उनसे हमने कुछ मुद्दों पर बात की। वे पत्रकार भी है, रेडक्रास के उपाध्यक्ष व किशोर न्याय परिषद के सदस्य भी। प्रस्तुत है बक्सर खबर की उनसे हुई बातचीत के अंश।

विश्वसनियता में आई कमी, नहीं रहा लिहाज : शशांक
बक्सर खबर : पत्रकारिता का दौर बहुत तेजी से बदल रहा है। संघर्ष से ही समाधान मिलता है। सफलता के लिए जरुरी है आप सतत लगे रहें। लेकिन आज की पीढ़ी आगे निकलने के चक्कर में सारे मूल्य ध्वस्त कर रही है। स्वयं को ही लोग आइकन मानने लगे हैं। सीनियर का लिहाज खत्म हो रहा है। जिसका नतीजा है पत्रकारिता से बेबाकी गायब हो गई है। खबर लिखने वालों को ब्रेक से मतलब रह गया है। सच की चिंता उन्हें नहीं। नतीजा लोगों के बीच मीडिया की साख कमजोर हो रही है। लिखने वालों को सीखने की ललक रखनी चाहिए। स्वयं गुरु बनने से बहुत नुकसान होता है।
पत्रकारिता जीवन : न्यायालय के खिलाफ खबर लिख बनाई पहचान
बक्सर : पत्रकारिता जीवन 1990 में प्रारंभ हुआ। आरा से छपने वाली पाक्षिक पत्रिका भोजपुर कंठ के लिए लिखना शुरु किया। फिर बाबा टाइम्स, नवभारत टाम्स, प्रभात खबर, हिन्दुस्तान, आज से जुड़े। इस बीच 2004 में रेडियो से जुड़े। 2009 में राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र के कार्यालय प्रभारी। जिसका सफर अभी जारी है। काम करने के दौरान यादगार अनुभव का जिक्र करते हुए शशांक कहते हैं। मैंने डुमरांव में रहते हुए न्यायालय के खिलाफ खबर लिखी। फर्जी गवाह खड़ा कर लेली जमानत। इतनी चर्चित हुई की उसने पूरे जिले में मुझे पहचान दिलाई।
व्यक्तिगत जीवन व भरा-पूरा परिवार
बक्सर : इक्कीस जनवरी 1970 को शशांक का जन्म डुमरांव के स्व. चन्द्रशेखर उपाध्याय के घर में हुआ। तीन भाइयों में इनका स्थान दूसरा था। 1985 में राज हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। एमवी कालेज से स्नातक करने के उपरांत बीएचयू से एम ए किया। वीर कुंवर सिंह विश्व विद्यालय से पीएचडी की। इतना ही नहीं समाजसेवी संस्था से जुड़ बच्चों के लिए कार्य किया। जिसके कारण वे आज किशोर न्याय परिषद के सदस्य हैं। 2013 में ही उनका चयन इस पद के लिए किया गया। रेडक्रास से भी जुड़े रहे। फिलवक्त सोसाइटी के उपाध्यक्ष भी हैं। दो बेटे पढाई कर रहे हैं। पत्नी ज्योति सुमन शिक्षिका हैं।

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