‌‌‌13 सौ श्रद्धालुओं संग चार धाम यात्रा कर जीयर स्वामी ने बनाया किर्तिमान

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‌‌-24 से प्रारंभ हुई यात्रा दो नवंबर को हरिद्वार पहुंच हुई संपन्न
-पांच सौ लोगों ने एक साथ पिंडदान कर बनाया अनुठा किर्तिमान
बक्सर खबर। 13 सौ लोगों के साथ चार धाम यात्रा कर भारत वर्ष के महान संत जीयर स्वामी जी ने किर्तिमान स्थापित कर दिया है। इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं संग किसी महात्मा ने चार धाम दर्शन नहीं किए हैं। पिछली सदी तक किर्तिमान किसी के नाम नहीं है। सूचना के अनुसार भारत वर्ष के महान संत त्रिदंडी स्वामी के शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने यात्रा की तैयारी कोविड से पहले ही की थी। लेकिन, सरकार द्वारा प्रतिबंध के कारण लगभग डेढ़ वर्ष तक यात्रा टल गई।

पूरी योजना के तहत तैयारी शुरू हुई और बिहार के बक्सर, सासाराम, कैमुर, रोहतास, उत्तर प्रदेश के बलियां, गाजीपुर, चंदौली और वाराणसी के 1237 श्रद्धालु और पचास से अधिक संत, महात्मा 23 अक्टूबर तक हरिद्वार पहुंच गए। वहां 65 छोटी-बड़ी बसों से सभी श्रद्धालु 24 की सुबह चार धाम दर्शन के लिए रवाना हो गए। इस संबंध में पूछने पर जीयर स्वामी जी ने कहा कि यात्रा तो 2100 श्रद्धालुओं की थी। लेकिन, कोविड के कारण यह टलती रही। साथ ही उतराखंड में लैंड स्लाइड व विपरित मौसम के कारण श्रद्धालुओं की संख्या 1237 तक चली आई। लेकिन, संतो एवं अन्य लोगों को मिलाकर कुल 1300 लोग इसमें फिलहाल शामिल रहे।

हिमालय की गोद में बसा यमुनोत्री धाम

पहला पड़ाव रहा यमुनोत्री धाम
बक्सर खबर। श्रद्धालुओं के जत्थे का पहला पड़ाव रहा उत्तर काशी जिले का यमुनोत्री धाम। हालांकि 24 को यात्रा का पड़ाव खैराटी में रहा। यहां से 25 की सुबह यमुनोत्री का सफर प्रारंभ हुआ। इसी तिथि को जानकीचट्टी से श्रद्धालुओं ने छह किलोमीटर की चढ़ाई पूरी कर यमुनोत्री का दर्शन किया। हरिद्वार से इसकी कुल दूरी लगभग 255 किलोमीटर है।

यमुनोत्री दर्शन को जाते महत्मा मुक्तीनाथ, बनमाली जी व अन्य

यहां कालिंदी पर्वत से निकलती जलधारा ही यमुना नदी का मुख्य स्त्रोत है। यहां माता का मंदिर बना हैं। जिसमें यमुना के साथ गंगा व सरस्वती की प्रतिमा भी बनी है। समुद्र तल से इसकी उचांई लगभग 3235 मीटर है। श्रद्धालु दर्शन उपरांत पुन: खैराटी के पड़ाव पर आकर रुके। रात्रि विश्राम यहीं तय था।

गंगोत्री धाम मंदिर में दर्शन के लिए खड़े श्रद्धालु

दूसरा पड़ा गंगोत्री धाम
बक्सर खबर। गंगोत्री धाम भी उत्तर काशी जिले के अंतर्गत आता हैं। हालांकि यमुनोत्री से इसकी दूरी 45 किलोमीटर है। लेकिन, सड़क मार्ग से दूरी लंबी है। इस वजह से श्रद्धालुओं ने हिना में 26 अक्टूबर की शाम पड़ाव डाला। श्रद्धालुओं की संख्या ज्यादा थी। इस लिए वैसे स्थान को चुना गया। जहां उनके रुकने और भोजन-प्रसाद की व्यवस्था सुलभ हो। यहां से 27 की सुबह गंगोत्री की यात्रा प्रारंभ हुई।

गंगोत्री धाम में जीयर स्वामी जी संग वहां पहुंचे श्रद्धालु

तीन घंटे की यात्रा कर लोग तय स्थान पर पहुंच गए। मंदिर तक जाने के लिए सड़क मार्ग की सुविधा है। यहां बस पड़ाव से महज 400-500 मीटर पैदल चलना पड़ा। हालांकि गंगोत्री मंदिर से गोमुख की दूरी 19 किलोमीटर है। ऐसा यहां लगे बोर्ड पर अंकित है। समुद्र तल से इसकी उंचाई लगभग 3059 मीटर है। दर्शन-पूजन के उपरांत श्रद्धालु वापस हिना में आकर रुके।

हिमालय की गोद में बसा भगवान केदारनाथ का मंदिर

29 को श्रद्धालु पहुंचे बाबा केदार धाम
बक्सर खबर। 28 अक्टूबर की सुबह श्रद्धालुओं की यात्रा केदारनाथ के लिए प्रारंभ हुई। पूरे दिन के सफर के बाद 250 किलोमीटर की यात्रा कर लोग रूद्रप्रयाग जिले के सीतापुर और रामपुर में रूके। 29 की सुबह गौरी कुंड से 18 किलोमीटर की यात्रा शुरू हुई। कुछ लोग पैदल, कुछ घोड़े के सहारे मंदिर पहुंचे। दर्शन पूजन के बाद कुछ वहीं रुक गए। जो ज्यादा थक गए थे। अन्य लोग रात एक बजे तक वापस लौट गए। 30 अक्टूबर को भी लोग उसी पड़ाव पर रूके रहे। बाबा केदार की उचांई सर्वाधिक 3584 मीटर रही। प्रधानमंत्री का कार्यक्रम भी यहां प्रस्तावित था। इस वजह से सुरक्षा बढ़ गई थी।

नर व नारायण पर्वत के मध्य स्थित भगवान बदरीनारायण भगवान का मंदिर

एक नवम्बर को बद्री नाथ भगवान के हुए दर्शन
बक्सर खबर। 31 की सुबह श्रद्धालुओं का जत्था बद्रीनाथ के लिए रवाना हुआ। शाम छह बजे के लगभग लोग बद्री नाथ पहुंच गए। पहले से श्रद्धालुओं के लिए धर्मशालाओं का इंतजाम किया गया था। कुछ लोगों से संध्या आरती का आनंद लिया। एक नवम्बर की सुबह से ही श्रद्धालुओं की कतार दर्शन के लिए लग गई। दोपहर तक सबके दर्शन हुए।

बदरीनाथ भगवान के मंदिर के समक्ष जीयर स्वामी जी संतो व अपने अनुयायियों के साथ

फिर वहां से लोगों ने व्यास गुफा, गणेश गुफा, भीम पुल, सरस्वती मंदिर का भ्रमण किया। रात्रि विश्राम वहीं हुआ। 2 तारीख की सुबह सभी लोग ब्रदीनाथ धाम से वापस हरिद्वार के लिए तड़के सुबह रवाना हुआ। क्योंकि 315 किलोमीटर की दूरी तय करनी थी। इस तरह 24 अक्टूबर को प्रारंभ हुई यात्रा 2 नवम्बर को पुन: हरिद्वार में आकर संपन्न हो गई।

यात्रा के समापन पर जीयर स्वामी जी से विदा लेते शिष्य

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