-श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन शिवपुरी काली मंदिर में आचार्य ने सुनाई उत्तरा और द्रौपदी की मार्मिक गाथा बक्सर खबर। नगर के शिवपुरी स्थित काली मंदिर परिसर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथा व्यास मामा जी के कृपा पात्र आचार्य रणधीर ओझा ने श्रद्धालु श्रोताओं को भगवान श्रीकृष्ण की करुणा और शरणागत भक्त की रक्षा के प्रसंगों से भावविभोर कर दिया। उन्होंने कहा कि जब भी मनुष्य को विपत्ति आती है, वह संसार और लोगों की शरण में जाता है। परंतु संकट की घड़ी में केवल भगवान ही सच्चे रक्षक होते हैं। उन्होंने महाभारत के प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताया कि जब अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा, तो उत्तरा अर्जुन या भीम जैसे योद्धाओं के पास नहीं गईं, बल्कि दौड़ती हुई भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में जा गिरीं।
आचार्य श्री ने बताया कि उत्तरा को यह सीख द्रौपदी ने दी थी कि “बेटी, विपत्ति में किसी अन्य का आश्रय मत लेना, क्योंकि जो अन्याश्रय करता है, उसे भगवान का आश्रय नहीं मिलता।” यही कारण रहा कि उत्तरा ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली और उनसे प्रार्थना की “प्रभु, मेरी मृत्यु हो जाए तो भी चलेगा, पर मेरे गर्भस्थ शिशु को बचा लीजिए।” कथा के एक अन्य मार्मिक प्रसंग में कथावाचक ने बताया कि जब द्रौपदी ने अपने पति, भीष्म और अन्य जनों से आशा बांधे रखी, तब तक भगवान नहीं आए। लेकिन जैसे ही उसने ‘हे श्याम’ पुकारा और साड़ी के पल्लू को दांत से छोड़ा, प्रभु स्वयं साड़ी के रूप में प्रकट होकर उसकी लाज बचाने आ गए।

ठीक इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भस्थ शिशु की रक्षा के लिए श्वास रूप में उसके उदर में प्रवेश कर ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को निष्क्रिय किया।आचार्य रणधीर ओझा ने कहा कि भागवत का संदेश यही है कि प्रत्येक प्राणी को भगवत आश्रय लेना चाहिए, अन्याश्रय नहीं। प्रभु अकारण करुणा के भंडार हैं, जो अपने भक्त की हर परिस्थिति में रक्षा करते हैं। कथा के दौरान जैसे-जैसे प्रसंग आगे बढ़ते गए, श्रद्धालुओं की आंखें नम होती रहीं और बार-बार “जय श्रीकृष्ण”, “भागवत भगवान की जय” के जयघोष से पूरा परिसर गूंज उठा।