शिक्षा का दूसरा उद्देश्य चरित्र का निर्माण करनाः शिवांग

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बक्सर खबरः भारत की प्राचीन शिक्षा का दूसरा उद्देश्य था बालकों के नैतिक चरित्र का निर्माण करना। उस युग में भारतीय दार्शनिकों को पूर्ण विश्वास था कि केवल लिखना-पढना ही शिक्षा नहीं है। नैतिक भावनाओं को विकसित करके चरित्र का निर्माण करना परम आवश्यक है। उक्त बातें सिमरी में शिवांग विजय सिंह ने ईकरा डिजायर इंग्लिश स्कूल के वार्षिक उत्सव पर कही। श्री सिंह ने कहा परन्तु आज के समय में अत्याधुनिकता में चरित्र और नैतिकता का निमार्ण शिक्षक पढ़ना भूल गए हैं। इसलिए हम चाहेगें कि इस विद्यालय के माध्यम से अपने संसकृति को बचाने केे साथ छात्रों के एक ऐसे चरित्र का निमार्ण हो की लोग कहें यह छात्र ईकरा डिजायर इंग्लिश स्कूल का है। वही युवराज चंद्रविजय सिंह ने कहा कि शिक्षा का महत्व मनुष्य के जीवन में वैसे ही है। जैसे शरीर में आॅक्सीजन का है। जैसे आप आक्सीजन के बीना जिंदा नही रहे सकते वैसे ही शिक्षा के बिना समाजिक सम्मान व पहचान नही मिल सकती है। जो मनुष्य के जीवन के लिए अहम है। कार्यक्रम का उद्घाटन युवराज चंद्रविजय सिंह, महराज शिवांग विजय सिंह, एमएलसी राधा चरण सेठ ने संयुक्त रूप दीप प्रज्जवलीत कर की। इस मौके पर सरोज तिवारी, बृजनंद शर्मा, रामजी राय धर्मपाल पाण्डेय सहित दर्जनों अतिथि मौजूद थे।

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