पुण्यतिथि पर विशेष : ऋषि परंपरा के प्रकाश स्तंभ त्रिदंडी स्वामी जी

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बक्सर खबर। हिन्दी का अगहन महीना जिसे मार्ग शीर्ष भी कहा जाता है। इसी माह के कृष्ण पक्ष की दसमी तिथि को भारत वर्ष के महान संत पूज्य त्रिदंडी स्वामी जी ने समाधी ली थी। तिथि के तदनुसार आज 10 दिसम्बर को उनकी पुण्य तिथि थी। इस मौके पर देश के अनेक हिस्सों से उनके शिष्य यहां पहुंचे। अपने गुरू को याद किया और पुष्प अर्पित किए। उनके प्रिय शिष्य व उनकी परंपरा के वाहक पूज्य जीयर स्वामी जी ने भी उनका पूजन किया। इस पुण्यतिथि पर हम याद करते हैं उन महान संत को। इस आलेख के माध्यम से।

 

लक्ष्मी नारायण मंदिर के पीठाधीश्वर त्रिदंडी स्वामी जी महाराज सन्यासी जीवन व्यतीत करने वाले महात्मा थे। वैष्णव धर्म के वाहक होने का जो प्रमाण उन्होंने भारत वर्ष के सामने उन्होंने रखा। वह अपने आप में अनुपम है। लोक कल्याण के लिए 74 चतुर्मास यज्ञ एवं 250 से ज्यादा अन्य यज्ञ देश के विभिन्न भागों में करवाए थे। आज उन्हीं के पद चिह्न पर शिष्य जीयर स्वामी चल रहे हैं।
गृहस्थ परिवार में हुआ था जन्म
बक्सर खबर। राजपुर प्रखंड के सिसराढ़ गांव में उनका जन्म हुआ था। जानकार बताते हैं यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग 24 किलोमीटर दूर है। विक्रम संवत 1950 को सरयू पारिणी ब्राह्मण पंडित श्री नारायण चतुर्वेदी की पत्नी इंदिरा जी के पुत्र के रुप में उन्होंने जन्म लिया। जन्म के साथ ही ज्योतिषियों द्वारा बताया गया। बालक बहुत ही होनहार व विष्णु भक्त होगा। उसकी कुंडली में सन्यासी बनने का योग है। संयोग से किशोरावस्था में ही माता-पिता दोनों बालक को छोड़कर चल बसे। माता पिता की मौत के बाद स्वामी जी के लालन-पालन की जिम्मेदारी पितामह जोधन चतुर्वेदी को उठानी पड़ी। स्वामी जी की राशि का नाम निरंजन प्रसाद चतुर्वेदी था।

उनके शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी

यज्ञोपवित के बाद ही घर से निकल पड़े थे त्रिदंडी स्वामी
बक्सर खबर। श्री त्रिदंडी स्वामी जी का जब उपनयन संस्कार हो रहा था उस समय स्वामी जी पढऩे के लिए काशी जाने की जिद पकड़ ली। हुआ यूं कि स्वामी जी का उपनयन संस्कार चल रहा था। उसी दौरान संस्कार में यह विधान था कि बालक को पढऩे जाने का स्वांग करना होता था। फिर परिवार के लोग उस बालक को मना कर घर लाते थे। लेकिन जब स्वामी जी को काशी जाने का स्वांग करने का समय आया तो स्वामी जी काशी जाकर पढऩे की जिद्द पकड़ लिए। बहुत समझाने बुझाने के बाद भी जब स्वामी जी नहीं माने तो उनके पितामह ने लक्ष्मी नारायण मंदिर बक्सर में पढऩे भेजने के लिए राजी हो गए। उपनयन संस्कार के दूसरे दिन स्वामी जी को बक्सर पढऩे के लिए भेज दिया गया।
रामकृष्णाचार्य स्वामी के बने शिष्य
बक्सर खबर। लक्ष्मी नारायण मंदिर में पढऩे के दौरान श्री 1008 श्री राम कृष्ण आचार्य स्वामी जी ने पंच संस्कार संपन्न कराकर श्री त्रिदंडी स्वामी जी को अपना शिष्य बनाया। उसी समय रामकृष्णाचार्य जी ने स्वामी जी का नामकरण विश्वसक्सेनाचार्य रखा। स्वामी जी ने गुरु जी की आज्ञा से गंगा में खड़ा होकर उग्र तप करना प्रारंभ किया। बस क्या था तप शुरू करने के 21 वें दिन स्वामी जी की अंजलि में शेषफल पर विराजमान भगवान का साक्षात्कार हुआ। इसके बाद गुरु ने स्वामी जी को आज्ञा दिया कि अब गृहस्थ जीवन में नहीं जाना है। गुरु ने स्वामी जी को आदेश दिया कि पूर्ण विद्या प्राप्त कर तपस्वी जीवन व्यतीत करें।
गादी स्वामी ने दी संन्यास की दीक्षा
बक्सर खबर। श्री त्रिदंडी स्वामी जी ने साहित्याचार्य एवं व्याकरण आचार्य की उपाधि प्रथम श्रेणी से प्राप्त कर वेद अध्ययन करने के लिए अनंत श्री विभूषित श्री कांची प्रतिवादि भयंकर पीठाधीश्वर भगवदनंताचार्य गादी स्वामी जी के पास गए। गादी स्वामी ने 1983 ईस्वी में स्वामी जी को दंड देकर योग पद पर आरूढ़ कर दिया। इस प्रकार स्वामी जी 74 वर्ष तक सन्यासी जीवन व्यतीत करते रहे। अंत में 2 दिसंबर 1999 को स्वामी जी समाधि लेकर जन्म जन्म के लिए इस दुनिया को छोड़ चल बसे।
आलेख त्रिदंडी देव समाधी स्थल से जुड़े संतो द्वारा उपलब्ध कराई गयी जानकारी पर आधारित है।

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