दारु बंद न हुई, शहर बंद हो गवा …

0
1203

बक्सर खबर। माउथ मीडिया
आज एक नंबर से बार-बार फोन आ रहा था। मैंने फोन उठाया तो उधर से आवाज आई। हम बोल रहे हैं गुरु बतकुच्चन। उनकी आवाज सुन मुझे याद आया। शुक्रवार है बतकुच्चन गुरु से मिलने का दिन था आज। मैंने कहा सलाम मियां। मेरे अल्फाज सुन वे बोले अरे गुरु हम जमाने बदे मियां होंगे तोरे लिए तो हम भाई के समान हैं। मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। उनसे माफी मांगने की सोच ही रहा था। तभी उनकी आवाज आई। आज दिन भर दिखे ना ही तुम शहर में।

मैंने उनको बताया पिता जी को लेकर पिछले कुछ दिनों से बनारस आया हूं। उनकी तबीयत कुछ नासाज है। बतकुच्चन गुरु बोले यार हम्मे बताए नहीं। कवनो दिक्कत हो तो बताया हमें। मैंने पूछा… और कहिए शहर का क्या हाल है? इतना कहर मैंने तो जैसे उनको बोलने का मौका दे दिया। शुरु हुए तो बखिया उधेड़ दी। अरे आजकल देश में बंदी का मौसम चल रहा है। कवनो नोट बंदी किया, कुछ दिन पहले एसएसटी और आरक्षण के नाम पर भारत बंद किया रहा। ओकरे कुछ दिन बाद आरक्षण हटावे ला सब बंद किए रहे। ई दिल्ली वाली हवा अब हमरे शहर में भी पहुंच गवा रही।

add

यहां भी सब शहर बंद किए रहे। लेकिन कुछ एडवांस तरीका से। दस से चार जैसे कवनों आफिस बंद हुआ रहा हो। बंद करावे वालन सब नारा लगा रहे थे। पुलिस अपराधी में मेल है, हत्या लूट का चल रहा खेल है। तब हमारा पता लगा कुछ नेतवन सब बंदी कराए हैं। हम बोले अच्छा किए जौन तू लोग बंदी करा दिए रहे। दुपहरिया में सब दुकानदार झूठे धूपा में मरत हउन सारे। लेकिन गुरु बंदी बड़ा अच्छा चीज हौ। अब देखा गंगा जी पर बना पुल कमजोर हौ। प्रशासन ओकरा बंद करा दिया रहा। भारी वाहन बंद, छोटे वाहन चालू। कुछ साल पहले बिहार सरकार दारू बंद करा दिया रही। खूब वाह-वाही हुई रही। लेकिन ससुरी ई दारू पूरी तरह बंद हुआ नहीं रही। ए शहर में पंडित से ले के पाल तक, सिंह से लेके ग्वाल तक सब दारू बेच व पी रहे हैं। आज जौन बंदी हुआ रही ओम्मन बहुते मनई ऐसन दिखे रहे जौन दारुबाज हैं।

भला हो बंदी का इन सबका जीवन सुधर गवा। बहुते पियक्कड़ नेता हो गवा। इन सबकी अंतरआत्मा आज सड़क पर आवाज दे रही थी। बक्सर में लूट-छीनैती बंद करो। हमसे रहा नहीं गवा। पहुंच गए उहां जहां नेता सब धरने पर बैठा रहा। उहां सब बोल रहा था। बहुते हत्या हो रहा है। ईट से ईट बजा देंगे। इ एसपी का हटा देंगे। हम सुने तो अच्छा लगा। अब नेता सब बदल रहा है। अच्छा काम रहा है। उहां बैठे एक मिला से हम पूछे आपके घर के काई मराया है का जी। इतना सुनते ही वह भड़क गवा । आंख तरेरी तो मैं डर गवा। मैंने कहा… नहीं हम समझे यहां सताए हुए लोग आए होंगे। हमहू उ लोग से मिलना चाहते थे। यह सुन नेता पूरी तरह भड़क गया। मिलवाएं तोरा मृत के परिवार से। जाता है कि नहीं इहां से। हम वहां से निकलते बने। यही सोच रहे थे सब सुधर जाएगा लेकिन नेतवन सब का बोली बचन नहीं सुधरेगा। इतना सुन मैंने उनसे कहा गुरु हम बाहर हैं। थोड़ी मोहलत मिलेगी। बतकुच्चन गुरु बोल हां ठिक हौ, तु दवा-दारु कराव हम हूं यहां शहर के बंदी का मजा लेत हैं। (कुछ व्यस्तता के कारण शुक्रवार का यह साप्ताहिक कालम आज शनिवार को प्रकाशित हो रहा है)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here