सूर्य नारायण के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का त्योहार है छठ : जीयर स्वामी जी

0
316

बक्सर खबर । आप बात भारतीय दर्शन की करें या प्राचीन धार्मिक ग्रंथों की। हमारे यहां मुख्य रुप से पंच देवों की पूजा का विधान है। सृष्टि के सृजन में इन पंच देवों का महत्वपूर्ण योगदान है। जिसमें सूर्य प्रधान देव हैं। देव का अर्थ होता है जिसके कर्म, व्यवहार कल्याण करने वाले हों। इस लिए हर कालखंड में सूर्य की उपासना की गई है। वर्तामान दौर में लोग इसे छठ पूजा कहते हैं। छठी मइया के गीत भी गाते हैं। वास्तव में छठ तिथि है। जिससे स्त्री भाव का बोध होता है। लोकोपचार में इसे जोड़कर लोग छठ मइया के गीत गाने लगे और त्योहार का नाम ही छठ हो गया।

कार्तिक मास के शुल्क पक्ष की षष्ठी तिथि को यह व्रत मनाया जाता है। षष्ठी अर्थात छह, जो अपभ्रंश होकर छठ हो गया। सूर्य के कारण ही जगत का संचालन हो रहा है। इस लिए यह उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का त्योहार है। सूर्य का एक नाम सूर्यनारायण है। अर्थात सूर्य को यह शक्ति भगवान नारायण की कृपा से प्राप्त होती है। सृष्टि के पालक भगवान नारायण की शक्ति से कृपा पाकर ही सूर्य देव जगत को प्रकाशमान करते हैं। संतान की कामना लेकर व्रत करने वाले शष्ठी तिथि का भजन कीर्तन करते हैं। इसकी भी अपनी कई मान्यताएं हैं।
सूर्य उपासना की प्राचीन कथाएं
बक्सर खबर। जीयर स्वामी जी कहते हैं आध्यात्मिक ग्रंथों में कई कथाएं मिलती है। द्वापर युग में अंगराज कर्ण भगवान सूर्य की पूजा कमर तक जल में खड़े होकर करते थे। उन्होंने चैत्र व कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को विशेष सूर्य-पूजा शुरू की। जो बाद में छठ पूजा के रुप में जन स्वीकार्य हो गई। एक कथा के अनुसार मगध सम्राट जरासंध के एक पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था। उनकी रोग-मुक्ति के लिए ब्राह्मणों ने सूर्योपासना की। त्रेताकाल के संदर्भ के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीरामचंद्र ने अयोध्या में रामराज की स्थापना के अवसर पर सीता के साथ उपवास रखकर भगवान सूर्य की आराधना की। इनके अलावा, ऋग्वेद से लेकर ब्रह्मवैवर्त पुराण, मार्कण्डेय पुराण और उपनिषदों तक सूर्यपूजा के अनेक प्रसंग और कथा-संदर्भ भरे पड़े हैं।
धरेलु संसाधन से करें पूजा
बक्सर खबर। स्वामी ने इस संदर्भ में चर्चा करते हुए कहा कि पुरानी कथाओं में इसका उल्लेख मिलता है। आप घर पर उपलब्ध सर्व सुलभ वस्तुओं से पूजा करें। अर्थात चावल, चना, गुण, जल, दूध, सूप, दौनी, मिट्टी का चूल्हा यह सबकुछ घर में उपलब्ध होने वाले संसाधन हैं। जो सामान्यतया हर गृहस्थ के घर में होते हैं। आज मौजूदा समय में इसपर आधुनिकता हावी होती जा रही है। जब धार्मिक ग्रंथ यह बताते हैं। भगवान भाव से मिलते हैं। उसके लिए विशेष आडंबर करने की आवश्यकता नहीं। आवश्यकता हैं तो शुद्धता और पवित्रता की। क्योंकि स्वच्छता हर देवी-देवता को प्रिय है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here