बिहार के किसानों को क्यूं नहीं आता गुस्सा

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बक्सर खबर (माउथ मीडिया)। मैं पिछले कुछ दिनों से गांव में हूं। इस लिए स्वयं भी भीड़ से कटा हुआ हूं। काम की व्यस्तता में कम लोगों से ही बात होती है। इसी बीच अचानक बतकुच्चन गुरु का फोन आया। थोड़ा आश्चर्य हुआ। अक्सर मैं ही उनकी तलाश करता हूं। उन्होंने कैसे और क्यूं याद किया? यह सवाल मन में उठ रहा था। राम-सलाम हुआ और मैं उनसे फोन करने का कारण पूछ बैठा। उन्होंने कहा अरे गुरू हम तो से पूछे बदे फोन किए हैं। किसान सब अडिय़ा गया है। सरकार से कृषि वाला बिल लौटावे के मांग कर रहा है।

हमरा इ समझ में नहीं आ रहा है। जेकरे बदे कानून बनाए हैं। उहे पसंद नहीं कर रहा है। तो का झाम फंसाना है। बील के भर दो, काहे ला समस्या खड़ा किए हो। मैं उनकी बात सुन कर हंसने लगा। मैंने उनसे पूछा बिहार के किसान इस आंदोलन में शामिल नहीं हुए, आप क्या सोचते हैं। मेरी बात सुन बतकुच्चन गुरु ने कहा अरे भाई बंदर का जाने आदी के स्वाद। यहां के किसान के समर्थन मूल्य पर धान कबो खरीदाता है। यहां के सरकार पैक्स वालन के अधिकार दी है। व सब मिल वाला से सेट कर लेता है।

चावल उहें से उठ जाता है। सब पैक्स वाला किसान के बोका बनाता है। व सब अपना हित गन के धान खरीदता है। मजे के बात है, उनको भी नहीं बकसता है। दो सौ रुपया खर्चा बताता है। ढ़ाई सो रख लेता है, 1600 का रेट से रुपया खाता में भेजता है। उहो लोग सोचते हैं, 12 सौ में बेचे से बढिय़ा है 16 सौ मिल रहा है। अब आपही बतावें जौन मिला सेटिंग में उ काहे आंदोलन करेगा। जे मनई के धान आ गेहूं कबो सरकारी दर पर बेचाया ही नहीं। व का जानता है इ कौन बला है।
माउथ मीडिया :- यह बक्सर खबर का साप्ताहिक व्यंग कालम है। जो शुक्रवार को प्रकाशित होता है। आप अपने सुझाव हमें कमेंट के माध्यम से दे सकते हैं।

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