जाने गुरू पूर्णिमा की विशेषता और उससे जुड़े तथ्य , व्यासपूर्णिमा

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बक्सर खबर (गुरू पूर्णिमा पर विशेष):
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात्परं ब्रहम तस्मै श्री गुरवे नमः।।
गुरुपूर्णिमा अर्थात सदगुरु के पूजन का पर्व। गुरु की पूजा—गुरु का आदर किसी व्यक्ति की पूजा नहीं है,व्यक्ति का आदर नहीं है अपितु गुरु के देह के अंदर जो विदेही आत्मा है—परब्रह्म परमात्मा है उसका आदर है। ज्ञान का आदर है, ज्ञान का पूजन है, ब्रह्मज्ञान का पूजन है।
‘गुरु’शब्द की व्याख्या कई प्रकार से की जाती है।
उदाहरणार्थ–
‘गरति सिञ्चति कर्णयोर्ज्ञानामृतम् इति गुरुः’
अर्थात् जो शिष्य के कानों मे ज्ञान रुपी अमृत का सिंचन करता है,वह गुरु है(‘गृ सेचने भ्वादिः’)।
‘गिरति अज्ञानान्धकारम् इति गुरुः’अर्थात् जो अपने सदुपदेशों के माध्यम से शिष्य के अज्ञान रुपी अन्धकार को नष्ट कर देता है, वह गुरु है (‘गृ निगरणे तुदादिः’)।
‘गृणाति धर्मादिरहस्यं इति गुरुः’अर्थात् जो शिष्य के प्रति धर्म आदि ज्ञातव्य तथ्यों का उपदेश करता है, वह गुरु है (‘गृ शब्दे क्र्यादिः’)।
‘गारयते विज्ञापयति शास्त्ररहस्यम इति गुरुः’अर्थात् जो वेदादि शास्त्रों के रहस्य को समझा देता है वह गुरु है(‘गृ विज्ञाने चुरादिः’)।

इसका एक नाम व्यास पूर्णिमा भी है
बक्सर खबर। गुरुपूर्णिमा को व्यासपूर्णिमा भी कहते है। वसिष्ठजी महाराज के पौत्र पराशर ऋषि के पुत्र वेदव्यासजी जन्म के कुछ समय बाद ही अपनी माँ से कहने लगे। ‘अब हम जाते हैं, तपस्या के लिये। ‘माँ बोली–बेटा! पुत्र तो माता पिता की सेवा के लिये होता है। माता-पिता के अधूरे कार्य को पूर्ण करने के लिये होता है और तुम अभी से जा रहे हो। व्यासजी ने कहा–माँ! जब तुम याद करोगी और जरुरी काम होगा, तब मैं तुम्हारे आगे प्रकट हो जाऊंगा। ‘मां से आज्ञा लेकर व्यासजी तप के लिये चल दिये। वे वदरीकाश्रम गये। वहां एकान्त में समाधि लगाकर रहने लगे।
वदरीकाश्रम में वेरपर जीवन – यापन करने के कारण उनका एक नाम ‘वादरायण’ भी पड़ा। द्वीप में पैदा होने के कारण द्वैपायन, तथा काले होने के कारण कृष्णद्वेपायन कहलाये। उन्होंने वेदों का विस्तार किया, इसलिये उनका नाम ‘वेदव्यास’ भी पड़ा। ज्ञान के असीम सागर, भक्ति के आचार्य, विद्वता की पराकाष्ठा और अथाह कवित्व शक्ति-इनसे बड़ा कोई कवि मिलना मुश्किल है। भगवान वेदव्यास के नाम से ही आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा का नाम ‘व्यास पूर्णिमा पड़ा है। इसकों गुरु पूर्णिमा भी कहते है। जबतक मनुष्य को सत्य के ज्ञान की प्यास रहेगी, तब तक ऐसे व्यास पुरुषों का, ब्रह्मज्ञानियों का आदरपूजन होता रहेगा।

लक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी

श्रद्धा और विश्वास का पर्व है गुरूपूर्णिमा
बक्सर खबर। व्यासजी ने वेदों के विभाग किये। ‘ब्रह्मसूत्र’ व्यासजी ने ही बनाया। पांचवां वेद महाभारत व्यासजी ने बनाया। भक्ति ग्रंथ श्रीमद्भागवत महपुराण सहित अठारहों पुराणों का प्रतिपादन भी भगवान वेदव्यास ने ही किया। विश्व में जितने भी धर्मग्रंथ है, फिर वे चाहें किसी भी धर्म-पंथ के हों उनमें अगर कोई सात्त्विक और कल्याणकारी बाते हैं तो सीधे-अनसीधे वेदव्यास जी के शास्त्रों से ली गई है। इसी लिये ‘व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वम्’ कहा गया है। व्यासजी के शास्त्र श्रवण के बिना भारत तो क्या पूरा विश्व में कोई अध्यात्मिक उपदेशक नहीं बन सकता। व्यासजी का ऐसा अगाध ज्ञान है।

पंडित नरोत्तम द्विवेदी

व्यासपूर्णिमा का पर्व वर्षभर के पूर्णिमा मनाने के पुण्य का फल तो देता ही है, साथ ही नयी दिशा, नया संकेत भी देता है। और कृतज्ञता का सद्गुण भी करता है। जिन महापुरुषों ने कठोर परिश्रम करके हमारे लिये सब कुछ किया। उन महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का अवसर–ऋषिऋण चुकाने का अवसर, ऋषियों की प्रेरणा और आशीर्वाद पाने का यही अवसर है–गुरुपूर्णिमा। यह आस्था का पर्व है, श्रद्धा का पर्व है, समर्पण का पर्व है। गुरुजनों, श्रेष्ठजनों एवं अपने से बड़ो के प्रति अगाध श्रद्धा का यह पर्व भारतीय सनातन संस्कृति का विशिष्ट पर्व है। ( बक्सर खबर की टीम द्वारा पंडित नरोत्तम द्विवेदी से प्राप्त जानकारी पर आधारित आलेख)

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