भोग में रोग और सम्पति में विनाश संलग्न है, वृद्धावस्था और मृत्यु का रखें सदैव ध्यान : जीयर स्वामी

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– मानव सिर्फ परिजनों के लालन-पालन में ही न गवाएं जीवन
बक्सर खबर। मनुष्य का जीवन माया से घिरा हुआ है। लेकिन, शास्त्र कहते हैं। मानव को अपना समस्त कर्म ईश्वर को समर्पित कर उन्हीं से अपना संबंध जोड़ना चाहिए। अन्यथा जीवन भर भय सताता रहेगा। जिस परिवार के भरण-पोषण के लिये व्यक्ति जीवन भर समस्त कर्म-कुकर्म कर संसाधन संग्रह करता है। वही परिवार वृद्धावस्था में उपेक्षा कर जीवन को बोझिल बना देता है। इसलिये मनुष्य को अपनी बुढ़ापे और मृत्यु को ध्यान में रखते हुए परमात्मा के प्रति समर्पित रहना चाहिए। सदाचारी जीवन व्यतीत करने वाले वाले व्यक्ति को कभी भय और उपेक्षा का दंश नहीं झेलना पड़ता। क्योंकि वह ईश्वर से जुड़ा रहता है। यह बातें भारतवर्ष के महान मनीषी संत पूज्य जीयर स्वामी जी महाराज ने शुक्रवार को कथा के दौरान कहीं।

स्वामी जी ने कहा कि शंकराचार्य जी ने वृद्धावस्था की स्थिति का वर्णन इस प्रकार किया है। अर्थात जब तक व्यक्ति धनोपार्जन के लिए सक्षम होता है। परिवार के सारे लोग उससे चिपके रहते हैं। लेकिन जब वही व्यक्ति बुढ़ापा के कारण जर्जर हो जाता है और धनोपार्जन के लिए समर्थ नहीं होता, तब परिवार का कोई भी सदस्य उससे बात भी नहीं करता है। इसलिए गोविन्द का भजन करें। हमेशा सदाचार को ध्यान में रखें। इससे गलत करने की प्रवृति पर भी रोक लगती है। स्वामी जी ने कहा कि आप यह जान लें। भोग में रोग का, सम्पति में विनाश, धन में राजा (सरकार), विद्या में कलह, तप में इंद्रियों की चंचलता, रूप में वासना, मित्रों में शोक, युद्ध में शत्रु और शरीर में व्याधि व मरण का भय रहता है। इस लिए हमेशा इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

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