जाने छठ पर्व का विधान व वैज्ञानिक महत्व

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बक्सर खबर : छठ महापर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें ब्रह्माड के प्रत्यक्ष देवता सूर्य की आराधना होती है।
व्रत विधान – इसका प्रारंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है।

पहले दिन  नहाय-खाय के तहत घर की सफाई परिवेश एवं स्वयं को भी पवित्र करना होता है। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजन के उपरांत ही अन्न ग्रहण करते हैं। भोजन शाकाहारी होना चाहिए, जिसमें चावल, चने की दाल, व लौकी की सब्जी को प्राथमिकता दी जाती है।
दूसरे दिन –खरना किया जाता है। पूरे दिन व्रती उपवास करते हैं। शाम में मिट्टी के चूल्हे पर गुड व चावल की खीर, रोटी बनती है। इसमें चीनी का प्रयोग वर्जित है। विधान यह भी है कि इसमें किसी तरह के बर्तन का प्रयोग न हो।
तीसरे दिन – कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मिट्टी के चुल्हे पर प्रसाद बनाया जाता है। इसमें चावल के लड्डू, ठेकुआ के अलावा लौंग, पान-सुपारी, गड़ी-छोहड़ा, चने, मिठाइयां, कच्ची दही, कच्ची हल्दी, अदरख, केला, नींबू, सिंदूर, सुथनी, मूली, नारियल आदि को प्रसाद में शामिल किया जाता है। सबको बांस की डलिया में रख व्रती व उनका पूरा परिवार अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ देने उस स्थान पर जाता है। जहां जल का प्रवाह हो अथवा वेदी बनी हो। सोहर गाते लोग वहां जाते हैं, पानी में घंटो खड़े होकर भगवान की आराधना करते हैं। कच्चे दूध से उनको अर्घ दिया जाता है। यही प्रक्रिया अगली सुबह चौथे दिन भी दुहरायी जाती है।

भगवान सूर्य की प्रतिमा को अंतिम रुप देता कलाकार
भगवान सूर्य की प्रतिमा को अंतिम रुप देता कलाकार

वैज्ञानिक महत्व
छठ पर्व में ज्योतिषीय महत्व वैज्ञानिक महत्व से भरा हुआ है। षष्ठी तिथि विशेष अवसर है। जिस समय धरती के दक्षिणी गोलार्ध से सूर्य की अल्ट्रावाइलट किरणें सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं। क्योंकि सूर्य अपनी नीच राशि तुला के प्रभाव में होते हैं। ऐसे में उनकी आराधना और जल तर्पण, दूध तत्पर्ण से विकिरण का प्रभाव धरती पर कम आता है। इसे ही लोक परंपरा में परिवार, पुत्र से जोड़कर विधि-विधान का रुप दिया गया है। ऐसा भी कहा जाता है कि छठी अर्थात षष्ठी मैया सूर्य भगवान की बहन हैं। इन दोनों की पूजा की जाती है। सूर्य पुत्र प्राप्ति के देवता कहें जाते हैं। जिसकी वजह से उनका पूजन पुत्र प्राप्ति के लिए कहा जाता है। महाभारत की कथाओं से सूर्य से पुत्र प्राप्ति का प्रसंग मिलता है।
कहां कहां मनता है पर्व  – बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीस गढ़, नेपाल के तराई क्षेत्र, मारिसस, त्रिनिडाड, सुमात्रा, जावा समेत कुछ द्वीप समुहों में जहां भारतीय मूल के लोग रहते हैं।

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