टाइमपास आइटम हो गया है अखबार : अनिल ओझा

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बक्सर खबर : पत्रकारिता का दौर तेजी से बदल रहा है। वह एक जमाना था। जब हाथ में अखबार लेकर चलना सभ्य लोगों की पहचान हुआ करता था। आज ऐसा समय आ गया है। यह सेवानिवृत हुए लोगों के टाइमपास का आइटम है। इसकी मुख्य वजह युवा वर्ग का प्रिंट मीडिया से हटता रुझान है। जैसे लोगों में पढऩे लिखने की रूचि ही नहीं रही। इस वजह से लिखने वालों की घोर कमी सामने आ रही है। खासकर इस वजह से पत्रकारिता का स्तर बहुत गिर गया है। पहले तो जिला स्तर पर त्रुटि की शिकायत मिलती थी। अब ऐसा वक्त आ गया है। राजधानी के कार्यालयों में भी कोई खबरों पर ध्यान नहीं देता। जो गया छप गया, चाहे राम हो या रहीम। पहले सजग पाठकों के लिए लोक संवाद कालम हुआ करता था। पाठक अपनी राय, सुझाव के साथ खबरों की कमी को सामने रखते थे। लोग भी इससे विमुख हो रहे हैं। समाज में ऐसे अनेक लोग हैं। जो पत्रकारों से ज्यादा ज्ञान रखते हैं। वे अपना सुझाव नहीं देते। सामाजिक और बौद्धिक सपोर्ट नहीं मिलने से लगातार मीडिया के लेखन स्तर में भी गिरावट आ रही है। यह सुलझे हुए अनुभवी बोल पत्रकार अनिल ओझा के हैं। अपने साप्ताहिक कालम इनसे मिलिए के लिए बक्सर खबर ने उनसे बात की। बातों ही बातों में उन्होंने कई महत्वपूर्ण पहलुओं का जिक्र किया। ग्रामीण परिवेश में पत्रकारिता करना और जरुरतों मजबूरियों के बीच कलम चलाने की क्या चुनौती होती है। इसका बखूबी बयान उन्होंने किया। प्रस्तुत है उनके विचार व उनका परिचय।

कौपी पेस्ट हो गई है पत्रकारिता  
बक्सर : आज का वक्त बदल गया है। पत्रकारिता कौपी-पेस्ट होती जा रही है। लिखने का जजबा समाप्त होता जा रहा है। नतीजा जन सरोकार की अनदेखी हो रही है। कम्प्यूटर युग आ जाने से पत्रकार भी पुरानी खबरों को री राइट करने की कला सीख रहे हैं। यह डेट आ गया, पुरानी खबर निकालो, डेट टाइम, दिन, शीर्षक जो जरुरी है बदलो खबर जारी कर दो। कोई प्रखंड है वहां की समस्या क्या है। उस पर खबर नहीं आती। कुछ लोगों के इर्द गिर्द खबरें घूम रहीं हैं। डीएम ने यह कहा, यहां गए, यह हुआ, वे बोले यही आज की खबरों का दौर है। इससे पत्रकारों को बचना चाहिए। आप जिस क्षेत्र से हैं। वहां की जरुरत, आवश्यकता, कमियों पर ध्यान दें। तभी अखबार अथवा मीडिया का जुड़ाव आम जन से होगा।
पत्रकारिता जीवन
बक्सर : अनिल ओझा कल तक जिले के युवा पत्रकारों में शामिल थे। लेकिन वक्त का पहिया उन्हें सीनियर पत्रकारों की श्रेणी तक धकेल ले गया है। वर्ष 1999 में वे पत्रकार बनने के लिए हिन्दुस्तान अखबार के पटना दफ्तर गए थे। संपादक गिरीश मिश्रा ने उनका चयन किया। अनुमति मिली 2000 में वे अपने गृह प्रखंड सिमरी से हिन्दुस्तान के पत्रकार बने। तीन वर्ष तक सिमरी के लिए कार्य किया। 2003 में डुमरांव के संवाददाता हो गए। यह सफर बहुत लंबा चला। 2008 में उन्हें बक्सर बुलाया गया। लेकिन पिता जी अचानक चले जाने के कारण उसी वर्ष पुन: डुमरांव वापस चले गए। वक्त और मजबूरियों ने उन्हें डुमरांव से बाहर नहीं जाने दिया। 30 मई 2014 को हिन्दुस्तान से डेढ़ दशक पुराना साथ छूट गया। 14 में ही उन्होंने राष्ट्रीय सहारा के लिए डुमरांव से लिखना प्रारंभ किया। यह क्रम फरवरी 2016 तक चला। इसी माह में उन्हें दैनिक जागरण डुमरांव के संवाददाता के रुप में जिम्मेवारी मिली। नई पारी शुरु हुई जो जारी है।

यज्ञ का पोस्टर

व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : अनिल ओझा का जन्म 14 मार्च 1972 को सिमरी प्रखंड के सिंघनपुरा गांव में हुआ। पिता दयाशंकर शंकर ओझा के वे प्रथम संतान थे। पांच भाई बहनों में सबसे बड़े होने के कारण उनका लालन-पालन बड़े जतन से हुआ। 1987 में डुमरी हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। 1993 में स्नातक उत्तीर्ण हुए। घर में सबसे बड़े होने का दायित्व उन्होंने बखूबी निभाया। आज टेक्स टाइल कालोनी डुमरांव में अपना घर बना जीवन बसर कर रहे हैं। पत्रकारिता के सुनहरे पल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा खुशी है हमने कलम पकड़ी तो अपने गृह प्रखंड व दियरा इलाके के लिए जमकर संघर्ष किया। जो मौका मिला उसका भरपुर उपयोग हमने सामाजिक हित में किया। आज भी वही प्रयास है।

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  1. शालीनता सामाजिक समरसता और अपने कुशल व्यक्तित्व से ओतप्रोत है हम सभी के आदर्श श्री अनिल ओझा चाचा जी

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