पुण्यतिथि विशेष : अपने ही शहर में बेगाने हुए उस्ताद

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-पुष्पांजलि अर्पित करने पहुंचे केन्द्रीय मंत्री
बक्सर खबर (पुण्यतिथि  पर विशेष )। भारत रत्न उत्साद बिसमिल्ला खां का जन्म बक्सर के डुमरांव शहर में हुआ था। नगर के बंधन पटवा मुहल्ले में 21 मार्च 1916 को जन्में उत्साद के बचपन का नाम करूद्दिन था। किशोर वय तक यहीं रहे और बिहारी जी के मंदिर में वे रियाज किया करते थे। लेकिन, उसी बीच अपने मामा के साथ वे तालीम के लिए बनारस गए तो फिर वहीं बस गए। आज उनकी जयंती है। लेकिन, अपने ही शहर में वे बेगाने हो गए हैं।

जहां कभी उनका पैतृक घर हुआ करता था। वहां अब खाली जमीन है। आस-पास अतिक्रमण है। शनिवार को उनकी पुण्यतिथि पर (21 अगस्त 2006)  केन्द्रीय पर्यावरण व खाद्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे वहां पहुंचे। लेकिन, हाल देख दंग रह गए। उनके साथ डुमरांव के एसडीओ हरेन्द्र राम भी उपस्थित रहे। अब उनके परिवार को कोई सदस्य वहां नहीं रहता। खाली पड़ी जमीन पर फूल चढ़ाकर मंत्री ने उनके प्रति श्रद्धा निवेदित की। साथ ही कहा, हमारा प्रयास रहेगा। डुमरांव के शहीद पार्क में सुबह-शाम उत्साद की शहनाई की धुन सुनाई पड़े।

‌‌‌जयंती पर पुष्प अर्पित करते केन्द्रीय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे

लता जी के साथ मिला था भारत रत्न
बक्सर। उत्साद जब तक जीवित रहे। शहनाई से उनका संग बना रहा। शहनाई छूटी तो वे भी चल बसे। इस देश ने उन्हें भरपूर सम्मान दिया। 1956 में संगित नाटक अकादमी एवार्ड प्रदान किया गया। 1961 में पद्यमश्री, 1968 में पद्यम भूषण, 1980 में पद्यम विभूषण। इसके उपरान्त वर्ष 2001 में वाजपेयी सरकार की अनुशंसा पर स्वर कोकिला लता मंगेसकर के साथ भारत रत्न प्रदान किया गया।

मुहल्ले के बच्चों से उत्साद के बारे में बातचीत करते मंत्री

बहुतों ने किए वादे लेकिन, उपेक्षित हैं उत्साद
बक्सर। उत्साद बिसमिल्ला खां ने उस उचाई का छूआ है। जहां तक जाना हर भारतीय के लिए गर्व की बात है। उनका नाम किसी सरकार की पैरवी का मोहताज नहीं रहा। लेकिन, सस्ती राजनीति करने वालों के लिए उनका गृह नगर सीख भी है। कभी मुख्यमंत्री रहे लालू यादव ने उनके नाम पर यहां नगर भवन बनाने की बात कही थी। पिछले वर्ष डुमरांव आए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कृषि कालेज की स्थापना के वक्त भी उनकी याद में कुछ करने को कहा था। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। डुमरांव में उनका घर भी जमिंदोज हो चुका है। क्योंकि उनके परिवार वाले स्वयं शहर छोड़ वाराणसी के निवासी हो गए हैं। डुमरांव के रहने वाले राजेश चौरसिया कहते हैं कि उनकी याद में यहां कुछ भी ऐसा नहीं हुआ। जिससे आने वाली नस्ल सीख ले।

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