पुण्यतिथि पर विशेष:- शहीद चितरंजन की शहादत

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बक्सर खबर। शहीद शब्द सुनने मात्र से वीरों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। समझदार और पढ़े लिखे लोग श्रद्धा भरी नजर से उस वीर के चित्र को देखते हैं। लेकिन, जिस मिट्टी में पला-बढ़ा कोई सपूत शहीद हो जाए और जिले के लोग उसे याद नहीं करे। कितना अजीब लगता है। ऐसा ही हुआ है शहीद चितरंजन सिंह के साथ। बक्सर जिले के डुमराँव प्रखंड अंतर्गत चिलहरी गांव निवासी स्व गुप्तेश्वर सिंह के पुत्र चितरंजन भारतीय सेना के जवान थे।

मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष कारगिल युद्ध में इस जांबाज योद्धा ने पाकिस्तानिसयों के छक्के छुड़ा दिए थे। कारगिल युद्ध में बेस्ट परफॉर्मेंस को देखते हुए सैन्य अधिकारियों द्वारा चितरंजन सिंह को इनाम स्वरूप एक बंदूक मिली। कारगिल युद्ध के बाद सीमा पर आतंकियों की घुसपैठ तेज हो गई थी। भारतीय सेना आये दिन ऑपरेशन चला रही थी। फिर वही हुआ। जो नहीं होना चाहिए था सियारों के झुंड ने 20 अगस्त 2001 को जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के नगरी जंगल में सर्च ऑपरेशन के दौरान शेर पर कायर आतंकियों ने छिपकर हमला बोल दिया। देश का वीर सपूत चितरंजन सिंह सदा के लिए भारत माता के आंचल में सो गये।

1जनवरी 1970 को जन्में चितरंजन के साथ यह घटना हुई पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। उनकी पत्नी याद करते हुए बताती हैं। 18 अगस्त 2001 की शाम आज भी याद है। जब सीमा पर तैनात चितरंजन सिंह ने पत्नी इंदु सिंह से फोन पर बात करते हुए बिगड़े माहौल की जानकारी दी थी। वे बोले तुम बच्चों का ख्याल रखना मैं हालात सुधरते ही आ जाऊंगा। 19 अगस्त 2001 को खुफिया इनपुट पर चितरंजन सिंह अपने साथियों के साथ जम्मू कश्मीर स्थित कुपवाड़ा के नागरि जंगल में सर्च ऑपरेशन पर गए थे 20 अगस्त की सुबह जंगल में एकाएक गोलाबारी शुरु हो गई। लडते हुए वह वीर गति को प्राप्त हुए। उसके अगले दिन विशेष विमान से तिरंगे में लिपटा उनका पार्थिव शरीर पटना एवं वहां से सड़क मार्ग पर पैतृक गांव चिलहरी लाया गया तो पूरे गांव में आज अश्रु धार बह पड़ी हर किसी की आंखें नम हो गई थी। दिल्ली के एक कार्यक्रम में सेना के लेफ्टिनेंट जनरल द्वारा शहीद चितरंजन सिंह की पत्नी इंदु को चितरंजन सिंह के पराक्रम के लिए राष्ट्रपति वीरता मेडल से नवाजा गया।
आज भी पूरे गांव को चितरंजन सिंह की शहादत पर है गर्व
30 साल की उम्र में शहीद चितरंजन की दो संताने हैं। एक बेटी मधु जिसकी शादी हो गई है। बालिग होने पर बेटे दिलीप कुमार ने आर्मी में नौकरी करने का प्रयास किया। लेकिन मेडिकल अनफिट घोषित होने पर ऐसा नहीं हो सका। इकलौता बेटा दिलीप अभी पटना में रहता हैं। निजी कारोबार करता है। उसने पिता को खो देने के बाद भी दुनिया को यह एहसास नहीं होने दिया कि उनको इसका गम है। सच ही कहा कि किसी ने वीर पिता की शहादत पर पुत्र को गर्व होता है दुख नहीं।

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