‌‌‌ऐसा गांव जहां हिन्दू मुस्लिम साथ खेलते हैं रामलीला

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-आजादी के पहले से हो रहा है मंचन
दो समुदाय के लोग देते हैं पूजा के लिए चंदा
बक्सर बखर। धर्म को लेकर आपसी कटूता की खबरें पूरे देश से आ रही हैं। क्योंकि लोग एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। इसकी वजह धर्म और जाति है। लेकिन, बक्सर जिले में ऐसे अनेक गांव हैं। जहां कौमी एकता की मिसाल देखने को मिलती है। इन गांवों में सभी धर्म के लोग एक साथ होली, ईद और दशहरा मनाते हैं। इसका सबसे सुखद उदाहरण है। मंगरांव गांव की रामलीला। यहां हिन्दू और मुसलमान मिलकर इसका मंचन करते हैं। बाहर से कोई मंडली नहीं आती। गांव के युवक ही साथ मिलकर इसका मंचन करते हैं। 1945 से इस गांव में इसका आयोजन हो रहा है। गांव के लोग बताते हैं कि दोनों समुदाय के लोग आपस में मिलकर चंदा भी जमा करते हैं। इसकी तैयारी कुआर माह से प्रारंभ हो जाती है। अर्थात नवरात्रि से डेढ़ दो माह पहले ही गांव के लोग उत्सव की तैयारी में जुट जाते है।

जिउतिया व्रत के दिन ही गांव में रामलीला शुरू हो जाती है। रामलीला समिति के व्यास बबन पांडेय ने बताया कि हमारे गांव में दोनों समुदाय के लोग साथ मिलकर यह लीला मनाते आ रहे हैं। 45 में लीला शुरू हुई थी। उस समय कजरियां और मंगराव-संगरांव के साथ मिलकर उत्सव मनाते थे। 1965 में लोगों ने आपसी निर्णय से गांव में एक जगह चयनीत की। जहां रामलीला मैदान बना। वहीं इसका मंच भी बनाया गया। वहां आज भी भी मेला लगता है। पुरानी समिति भंग हुई तो उसे गांव के कमला पांडेय, जन्नत रसिद खां आदि ने मिलकर दोबारा खड़ा किया। वह परंपरा आज भी चल रही है।

सीता से भीक्षा मांगता रावण

कहते हैं गांव के लोग
बक्सर बखर। रामलीला समिति में काम करने वाले युवाओं ने बताया अब तक यह सबसे मुश्किल दौर चल रहा है। क्योंकि नई पीढ़ी को इससे बहुत लगाव नहीं रहा। इसकी एक वजह यह है गांव में कोई युवा रहना ही नहीं चाहता। गांव छूटा तो संस्कार भी छूटा। लोगों को फिल्मी धून याद है। धर्म से जुड़ी जानकारी है नहीं। लीला मेघनाथ का किरदार निभाने वाले बाबर खा बताते हैं। नए युवा इससे कतरा रहे हैं। उन्हें अपनी संस्कृति और गवई परंपरा पिछड़ापन नजर आती है। हम लोग जब छोटे थे। तब से रामलीला देखते आ रहे हैं। इतना ही नहीं हम इसमें काम भी करते हैं। क्योंकि रामलीला देखना और उसका हिस्सा बनना हमारे लिए गौरव की बात है। समिति के अध्यक्ष पृथ्वीनाथ उर्फ पप्पू पांडेय बताते हैं कि हमारे यहां संगीतमय रामलीला होती है। मंच पर कला प्रदर्शन करने वालों के अलावा एक टीम रामलीला के प्रसंगो का गायन भी करती है।

रावण द्वारा सीता हरण का मंचन

धीरे-धीरे लुप्त हो रही है पंरपार
बक्सर खबर। जब रामलीला शुरू हुई थी। उस समय तीन गांव मिलकर इसमें शामिल होते थे। समय गुजरा तो कजरियां की रामलीला समाप्त हो गई। उसका असर मंगराव-सगराव पर भी पड़ी। लेकिन पूरे गांव ने मिलकर उसे संभाल लिया। लेकिन आज के दौर में चंदा तो एकत्र हो जाता है। लेकिन, रामलीला के पात्र ही नहीं मिलते। इस वजह से पूराने लोग और कुछ युवा मिलकर परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। गांव के भृगुनाथ पांडेय बताते हैं कि अगर युवाओं ने सहयोग नहीं किया। तो आने वाले दिनों में वर्षो पुरानी परंपरा के अस्तीत्व पर खतरा छा जाएगा।

कई गांवों के लोग आते हैं देखने
बकसर खबर। मंगराव की लीला देखने कई गांव के लोग यहां आते हैं। मेले की तैयारी जितने जतन से समिति के सदस्य करते हैं। उससे कहीं ज्यादा जोश के साथ बच्चे और दुकानदार इसका इंतजार करते हैं। गांव के मेले का आनंद शहर के भीड़ कई गुना ज्यादा होता है। क्योंकि इसमें अपनी मिट्टी की खुशबू साथ होती है। ग्रामीणों के अनुसार यहां अपराह्न तीन बजे रामलीला शुरू हो जाती है और संध्या छह बजे तक चलती है। यहां हकारपुर, ईटवां, रौनी, उतड़ी, घराड़ी, कजरियां, पलियां और पिपरा के लोग मेला देखने आते हैं।

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