बक्सर में आते हैं दूर-दूर से भिखारी, क्यूं

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बक्सर खबर। भारतीय संस्कृति हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसका एहसास तब हुआ जब कुछ भिझा मांगने वालों से बात हुई। जिन्हें लोग आमतौर पर तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं। वजह स्पष्ट है, आज के दौर में भिझा मांगना कई सवाल खड़े करता है। लेकिन, यह सभी को पता है। कब किसके सामने भीख मांगने की स्थिति आ जाए। कोई नहीं जानता। लेकिन, हमारे पास संस्कार रहेंगे। तभी हम उसकी तरफ ध्यान देंगे। नहीं तो व्यस्त जीवन में किसके पास फुर्सत है। सड़क किनारे बैठे व्यक्ति को भोजन के लिए राशन उपलब्ध कराए। यह तभी संभव है, जब आप अपनी झोली में किसी गरीब के लिए अन्न अथवा भोजन की सामग्री लेकर चलें। यह स्थिति तब और विकट हो जाएगी। जब भिखारियों की संख्या हजारों में हो। आज ऐसा ही नजारा दिखा। शहर के सभी गंगा घाटों पर स्नानार्थियों का रेला उमड़ा था। और घाट तक जाने वाले रास्तों के किनारे कटोरा फैलाए बैठे लोग।

यह दृश्य देखकर मन में निराशा घर करने लगी। लेकिन, उसी में एक ने कहा। बाबू कछू दो, हमें घर वापस जाना है। अनाज तो बहुत मिला। पर किराए के लिए रुपये कुछ कम हैं। उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। लेकिन, अनायास पूछ लिया। कहां जाना हैं? उसने कहा हाजीपुर, वहां क्यूं। जवाब मिला मेले के लिए यहां आए थे। मैंने पूछा क्यूं, इतनी दूर आने की क्या जरुरत थी। जब रुपये नहीं थे पास में। उनका कहना था, बक्सर में मेला लगता है तो कुछ दिन के राशन का इंतजाम हो जाता है। हम तो एक दिन पहले आए थे। बहुत से लोग तो खिचड़ी मेला के पहले ही आ जाते हैं। ज्यादा अनाज जमा हो जाने पर कुछ लोग उसे बीच में गांव भी पहुंचा आते हैं। यहां मेले में गांव से आने वाली महिलाएं हमें चावल, दाल, दान करती हैं। जिससे हमारे कई माह जुगाड़ हो जाता है। पर वह रुपये कम देतीं हैं। इस लिए कुछ कम पड़ रहे हैं। मुझे उसकी बाते सुन अच्छा लगा। चलो हमारी संस्कृति ऐसी है। जो भूखे का भी पेट भरती है। अगर मेले नहीं लगते तो संस्कृति के साथ ऐसे लोगों और बहुत से लोगों का रोजगार प्रभावित होता। वैसे आम दिनों हम खबरें बहुत लिखते हैं। लेकिन गांव का जरुरत मंद मजदूर जब अपनी झोली से भिखारी को दान देता है। तो यह नजारा देख हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होता है। क्योंकि सह सीख हमें अपने संस्कारों से मिली है। मेले की इस भीड़ में हमें आज की यही सबसे अच्छी खबर लगी। वैसे भीड़ में लोगों पॅाकेट काटने वालों की संख्या भी कम नहीं होती। लेकिन, यहां हम उससे ज्यादा इस खबर को खास समझते हैं।

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