गांव के नेता का हुआ निधन, जिले में शोक की लहर

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बक्सर खबर। ऋषिकेश तिवारी के निधन के साथ ही स्वस्थ्य राजनीति करने वाले स्वच्छ नेता की एक और पीढि़ का अंत हो गया। वे ऐसे नेता थे जो राजधानी में नहीं गांव में रहना पसंद करते थे। इस वजह से राजनीति के विरोधी भी उनका सम्मान करते थे। यह बातें भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष बबन उपाध्याय ने कहीं। उन्होंने स्व. तिवारी की मृत्यु पर गहरा शोक प्रकट करते हुए कहा वे बहुत ही स्वाभिमानी व्यक्ति थे। तीन बार विधायक रहे। मंत्री रहे लेकिन कभी गांव से उनका नाता नहीं टूटा।

विधानसभा का सत्र चलता था तो वे नियमित उसमें भाग लेते थे। लेकिन सत्र समाप्त होते ही सीधे गांव चले आते थे। दरवाजे पर आने वाले हर छोटे बड़े व्यक्ति का एक समान अभिवादन करते थे। आजीवन उन्होंने कभी किसी गलत व्यक्ति का साथ नहीं दिया। दल का नेता हो अथवा उनका वोटर। अगर किसी को गलत करते पाते थे तो उसका सीधा विरोध करते थे। सरपंच, मुखिया से लेकर विधायक और मंत्री तक रहे। लेकिन कभी उन्होंने अपने आप को समाज से अलग नहीं किया।
दिखावे की राजनीति से हमेशा रहे दूर
बक्सर खबर। उनके दौर को नजदीक से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार के के ओझा के अनुसार ब्रह्मपुर के तीन बार विधायक रहे। अधिवक्ता और सहकारिता बैंक भोजपुर के अध्यक्ष ऋषिकेश तिवारी का आज देहावसान से एक युग का अंत हो गया है। 1929 में जन्मे स्व तिवारी 1960 में पटना विश्वविद्यालय से विधि स्नातक डिग्री हासिल कर आरा और बक्सर व्यवहार न्यायालय में प्रैक्टिस कर ,1968 में अपने गांव निमेज के मुखिया चुने गए। 1972 में ब्रह्मपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुन लिये गए 1985 में मंत्री भी बन गए, लेकिन गवई जीवन से ता जीवन जुड़े रहे। वकालत का ज्ञान उन्हें गरीब गुरबा की लड़ाई लडऩे पर बाध्य करता रहा। कभी दारोग़ा से लड़े कभी अधिकारी से लड़े, अपराधी भी मिला उससे भी लड़े, ब्रह्मपुर के कई दबंग उनकी दबंगई के आगे बौने हो जाते थे। स्व. तिवारी बगल के शिवानंद तिवारी की तरह ए सी और सोफे पर राजनीति नहीं किये क्योंकि उनके पास स्व रामानंद तिवारी जी का संस्कार था। गांव कभी छूटा नहीं, शहर कभी जुड़ा नहीं, निमेज़ और ब्रह्मपुर चौरास्ता तक में ही राजनीतिक फ़लसफ़ा रहा। सादगी ऐसा कि विधानसभा से बाहर निकलकर बस पर विधायक सीट पर बैठकर चौरास्ता पर उतर जाया करते थे। गांव गिराव किसी की समस्या हो संवेदनशील ढंग से सुनते रहे औऱ समाधान करते रहे। उनकी समस्या बानगी के तौर पर आरा के एक पत्रकार की शादी में बारात वाली ओझा बस का भाड़ा कम करा दिये ताकि लड़की के बाप को कोई परेशानी नहीं हो।
निमेज़ में बने उनके मकान से नहीं लगता कि किसी मुखिया, जि़ला परिषद अध्यक्ष ,विधायक फिर मंत्री का मकान हो? न कोई गाड़ी न हीं कोई लाव लश्कर लेकिन दबंगई ऐसी की चौरास्ता चुप हो जाय। उनका देहावसान जि़ले में एक राजनीतिक युग का अंत कर दिया। निमेज़ गांव से ही सादगी का राजनीति का सूत्रपात कर एक दिशा दिया कि उद्देश्य निर्मल हो तो गाँव से भी मंत्री बना जा सकता है। यह महज संयोग ही है कि देहावसान भी अपने गांव निमेज़ में ही हुआ।
पंच तत्व में विलीन हुए तिवारी
बक्सर खबर। राज्य सरकार के मंत्री रहे ऋषिकेश तिवारी का अंतिम संस्कार सपही घाट पर हुआ। इससे पूर्व राजकीय सम्मान के साथ उन्हें सलामी दी गई। परिजनों ने नम आंखों से उन्हें विदा किया। उनके निधन की खबर सुन जिले भर से सामाजिक, राजनीतिक लोग गांव पहुंचे। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी ने उनकी मृत्यु पर गहरा दुख प्रकट किया। पार्टी जिलाध्यक्ष ने बक्सर खबर को फोन कर दल की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने की बात कही। वहीं दूसरी तरफ उनके छोटे पुत्र धीरेन्द्र तिवारी जो भाजपा के जिला उपाध्यक्ष हैं। उनकी वजह से भी जिले के अनेक भाजपा नेता अंतिम यात्रा में शामिल हुए।

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