रामेश्वर नाथ मंदिर में आयोजित श्रीराम कथा में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब बक्सर खबर। रामरेखा घाट स्थित रामेश्वर नाथ मंदिर परिसर में चल रही श्रीराम कथा के दौरान व्यास पीठ से कथा वाचन करते हुए परम पूज्य स्वामी प्रेमाचार्य पीताम्बर जी महाराज ने रविवार को सीता हरण और श्रीराम-हनुमान मिलन का मार्मिक प्रसंग सुनाया। कथा में उन्होंने मित्रता, त्याग, और भक्ति के गूढ़ भावों को सरल और भावनात्मक अंदाज में भक्तों के सामने प्रस्तुत किया। स्वामी जी ने कहा, “सच्चे मित्र कभी अवसरवादी नहीं होते, वे हर परिस्थिति में साथ निभाते हैं।” उन्होंने बताया कि जब सीता माता का रावण द्वारा हरण हुआ, तो श्रीराम और लक्ष्मण उनकी खोज करते-करते ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। वहां वानरराज सुग्रीव को उन पर संदेह हुआ और उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद साथी हनुमान जी को पहचान करने भेजा।
हनुमान जी ने साधु का रूप धारण कर जब श्रीराम-लक्ष्मण से भेंट की, तब विनम्र भाव से उनकी पहचान पूछी। श्रीराम का नाम सुनते ही वे भावविभोर हो गए, चरण पकड़ लिए और अपने वास्तविक रूप में आकर प्रभु श्रीराम को गले लगा लिया। यही भक्त और भगवान का पहला मिलन माना जाता है। स्वामी जी ने कहा कि सीता हरण कोई वास्तविक घटना नहीं, बल्कि एक लीला थी। श्रीरामचरित मानस में वर्णित है कि पाप के विनाश हेतु कोई कारण जरूरी था, और सीता के प्रतिबिंब का हरण उस लीला का माध्यम बना। रावण भी पूर्वजन्म के श्रापवश प्रभु के उद्धार की प्रतीक्षा कर रहा था।

नारी की महिमा का बखान करते हुए स्वामी जी ने कहा, “नारी कभी गलत नहीं होती। वह सृष्टि की रचयिता है और हर परिवर्तन की जड़ में उसकी भूमिका अहम होती है।” कथा में उन्होंने सूर्पणखा के प्रसंग को उद्धार की भूमिका से जोड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी की सहमति सबसे जरूरी है। ऐसे समय में ही जीवन में हनुमान जैसे मित्र और मार्गदर्शक का प्रवेश होता है। कथा के दौरान भक्तगण भाव-विभोर होकर संगीतमय भजनों पर झूम उठे। श्रद्धा और आस्था से भरे इस आयोजन में सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित रहे।