चौथे दिन श्रद्धालु हुए भावविभोर, महिलाओं ने गाया मंगलगीत बक्सर खबर। नगर के साईं उत्सव वाटिका लॉन में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन श्रद्धालुओं ने भक्ति और आनंद की अनुभूति की। कथा वाचन कर रहे आचार्य रणधीर ओझा ने कथा की शुरुआत भक्त प्रह्लाद की अमर गाथा से की। उन्होंने बताया कि प्रह्लाद ने विपरीत परिस्थितियों और अत्याचारों के बावजूद भी भगवान नारायण से अपनी भक्ति नहीं तोड़ी। यह कथा हमें सिखाती है कि ईश्वर पर विश्वास रखने वाला कभी डगमगाता नहीं। इसके बाद समुद्र मंथन का अध्यात्मपूर्ण प्रसंग सुनाया गया। आचार्य श्री ने कहा जीवन भी समुद्र मंथन की तरह है, जिसमें विष और अमृत दोनों मिलते हैं। धैर्य और विवेक से ही अमृत को पाया जा सकता है। फिर वामन भगवान की कथा सुनाते हुए आचार्य श्री ने धर्म, दान और विनम्रता की महत्ता पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि असली दान वही है, जिसमें त्याग हो, अहंकार नहीं। कथा का चरम क्षण भगवान श्रीकृष्ण जन्म रहा। जैसे ही आचार्य श्री ने कंस के कारागार में देवकी-वसुदेव के पुत्र के रूप में कृष्ण प्राकट्य का वर्णन किया, पूरा पंडाल जयकारों से गूंज उठा “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की!” श्रद्धालुओं ने दीप जलाए, भजन-कीर्तन हुआ और महिलाएं मंगलगीत गाने लगीं। कथा के समापन पर आचार्य रणधीर ओझा ने कहा कि भगवत कथा केवल सुनने की चीज नहीं, बल्कि जीवन में उतारने योग्य है। प्रह्लाद की भक्ति, समुद्र मंथन की नीति, वामन की विनम्रता और श्रीकृष्ण का अवतरण सब हमें धर्म, भक्ति और सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।