बक्सर खबर। नगर परिषद का उप चुनाव शनिवार को संपन्न हुआ तो प्रशासन ने राहत की सांस ली। चलो विधानसभा से पहले नगर परिषद पर ही पूर्वाभ्यास हो गया। लेकिन, अधिकारियों की लापरवाही और सूचना तंत्र की कमजोरी के कारण लोकतंत्र की आस्था का मजाक भी बन गया। शायद ही कभी इस तरह का कम मतदान प्रतिशत रहा हो। महज 23 फीसदी लोग ही वोट डालने बूथ तक गए। हां एक कीर्तिमान जरुर बना। पहली बार लोगों ने घर बैठे मोबाइल से मतदान किया। वैसे लोगों को विशेष लाभ मिला। जो दूर रहते हुए भी अपना वोट डाल पाए।
लेकिन, इसके लिए पापड़ बेलना पड़ा। सुबह आठ से दोपहर एक बजे का समय तय था। लेकिन, ऐप समय पर खुला ही नहीं। अपडेट मांगने लगा। जो डाउनलोड करने का प्रयास कर रहे थे। उनका फोन एपीके फाइल को डेंजर बता कर उसे टाल गया। नौ बजे के बाद कुछ लोगों का ऐप खुला, तो वह पूर्व से दर्ज नंबर को नोट रजिस्टर्ड बताने लगा। कुल मिलाकर राज्य निर्वाचन आयोग को ऐप व खुद की शाख बजाने के लिए समय का विस्तार किया गया। अपराह्न चार से छह बजे तक। तब जाकर 25 प्रतिशत का आंकड़ा 54 पहुंच पाया। जिले में लगभग 13 हजार लोगों ने ऐप से मतदान के लिए पंजीयन किया था। लेकिन, प्रशासनिक सूचना तंत्र का विभाग लोगों तक अपडेट जानकारी पहुंचाने में असफल रहा। और जिले के अधिकारी लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करने में।
मतदान अपराह्न पांच बजे बंद हो गया। लेकिन, छह बजे तक ऐप की सुविधा बहाल रही। जिसमें लगभग साढ़े छह हजार लोगों ने मतदान किया है। और ऑफ लाइन मतदान करने वालों की संख्या लगभग तीस हजार है। अर्थात ले दे कर नगर परिषद में 35 से 36 हजार लोगों ने मतदान किया है। जबकि कुल मतदाताओं की संख्या एक लाख 38 हजार से अधिक है। चुनावी हाल का हिसाब लगाने के बाद यही समझ में आ रहा है। खर्चा रुपया व आमदनी चवन्नी। इसमें प्रशासनिक खर्च शामिल नहीं है। जब इसका पूरा अनुमान आप लगाएंगे तो माथा पीट लेंगे। चाहे आप कितने भी बड़े गुरु घंटाल हों। क्योंकि जो वोट पड़े हैं, वह लाखो खर्च करने वालों के कारण पड़े हैं या लोक तंत्र प्रेमियों के कारण। इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। (गुरू गरम है, बक्सर खबर का साप्ताहिक कालम है। जो शनिवार को प्रकाशित होता है। इसमें हम उन मुद्दों को शामिल करते हैं। जिनकी चर्चा पत्रकारिता के लिहाज से जरुरी जान पड़ती है। )