सुदामा की भक्ति और श्रीकृष्ण की मित्रता की कथा सुन श्रद्धालु हुए भावविभोर

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काली मंदिर में श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन सजी भक्तिरस की गंगा                                                 बक्सर खबर। नगर के शिवपुरी स्थित काली मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा महापुराण के सातवें दिन आचार्य रणधीर ओझा ने श्रीकृष्ण-सुदामा की मित्रता एवं शुकदेव-परीक्षित संवाद का भावपूर्ण वर्णन किया। कथा में जब श्रीकृष्ण द्वारा सुदामा की अगवानी और उनके चावल ग्रहण करने की लीला सुनाई गई तो श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। आचार्य श्री ने कहा, “सुदामा ने कभी श्रीकृष्ण से कुछ नहीं मांगा, लेकिन उनकी पत्नी द्वारा भेजे गए चावल प्रभु ने ऐसे अपनाए कि सुदामा के भाग्य ही बदल दिए।” उन्होंने आगे कहा, “जो अपनी इंद्रियों को जीत ले, वही सच्चा सुदामा है। भक्ति में न स्वार्थ होना चाहिए, न दिखावा।”

शुकदेव-परीक्षित संवाद का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि कलयुग में दोष तो अनेक हैं, पर एक बड़ा गुण यह है कि भगवान का नाम लेने से सभी दोष दूर हो जाते हैं। मृत्यु के समय प्रभु का स्मरण मनुष्य को परमात्मा में समाहित कर देता है। आचार्य श्री ने कहा, “मानव शरीर ज्ञान और भक्ति का साधन है, यह देव योग से मिली हुई उत्तम नौका है। प्रभु को पाने के लिए मन में उनका सुमिरन और कीर्तन जरूरी है।” उन्होंने अंत में कहा, “भगवान बनना छोड़ो, उनका दास बनो। भक्ति भाव से प्रभु स्वयं दौड़े चले आते हैं।” गृहस्थ जीवन में भी संतोष को अपनाने की प्रेरणा दी।

 

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