डुमरांव में बनेगा शाही म्यूजियम

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राज परिवार की विरासत को मिलेगा नया जीवन, इन्टैक संभालेगा कला-संस्कृति की कमान                          बक्सर खबर। डुमरांव की समृद्ध कला, संस्कृति और राजघराने से जुड़ी ऐतिहासिक धरोहरों को अब सुरक्षित और संजोया जाएगा। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज द्वारा डुमरांव राज परिवार की विरासत को संरक्षित करने और डुमरांव राज गढ़ में एक भव्य शाही म्यूजियम विकसित करने की योजना तैयार कर ली गई है। सीताराम उपाध्याय संग्रहालय के प्रभारी एवं इन्टैक बिहार स्टेट के को-कन्वेनर डॉ. शिव कुमार मिश्र ने बताया कि डुमरांव के राजा स्वर्गीय चंद्र विजय सिंह के आमंत्रण पर इन्टैक के कंजर्वेशन डायरेक्टर डॉ. धर्मेंद्र मिश्र के नेतृत्व में विशेषज्ञों की टीम ने डुमरांव की ऐतिहासिक विरासत का गहन अवलोकन किया। तकनीकी जांच के बाद एक विस्तृत कार्ययोजना और प्राक्कलन तैयार किया गया है।इस टीम में इन्टैक के प्रिंसिपल डायरेक्टर नीलाभ सिन्हा, डॉ. धर्मेंद्र मिश्र, सुरेश बहादुर सिंह, सौरभ कर्मकार और मुकेश कुमार विश्वकर्मा शामिल रहे।

-मंदिरों, महलों और ऐतिहासिक भवनों का होगा संरक्षण डॉ. मिश्र ने बताया कि बांके बिहारी मंदिर के भित्ति चित्रों का संरक्षण, राजराजेश्वरी मंदिर और राम-जानकी मंदिर के डीपीआर का निर्माण, डुमरांव राज कार्यालय की काष्ठ निर्मित सामग्रियों का संरक्षण, पुराने महल के मुख्य द्वार और भूमि विकास बैंक भवन के संरक्षण हेतु डीपीआर तैयार हो गया है। इन सभी कार्यों पर जीएसटी सहित कुल संभावित खर्च 20,76,800 रुपये आंका गया है। डुमरांव में प्रस्तावित शाही म्यूजियम के निर्माण और कला वस्तुओं के संरक्षण पर जीएसटी सहित कुल संभावित व्यय 91,25,200 रुपये होगा। म्यूजियम में डुमरांव राज परिवार से जुड़े दुर्लभ तैल चित्रों का संरक्षण किया जाएगा। इनमें प्रमुख रूप से महाराज बहादुर केशव प्रसाद सिंह, महाराज रीवा बेंकट रमण सिंह, महाराज महेश्वर बख्श सिंह, बाबू राजेश्वरी प्रसाद सिंह और राधे प्रसाद सिंह के तैल चित्र शामिल हैं। तैल चित्रों के अलावा म्यूजियम में धातु, मार्बल और काष्ठ से बनी ऐतिहासिक कलावस्तुओं को भी सहेजा जाएगा। इनमें तलवारें, बंदूकें, खुखरी, ढाल, कटार, कवच, धनुष-बाण, फरसा, मुगदर, सरस्वती की मूर्ति, घोड़े का चाबुक, कमरबंद, पुराने औजार, कलम-दवात, छाता, दर्पण, तस्तरी, खाली कारतूस और अन्य दुर्लभ वस्तुएं शामिल हैं।

फोटो – डुमरांव राज गढ़ स्थित बांके बिहारी जी का मंदिर

इसके साथ ही अभिलेखीय पांडुलिपियां, टाइगर हेड ट्रॉफी, हिरण का सिर, खोपड़ी, चीता और बाघ की खाल जैसी ऐतिहासिक धरोहरों का भी संरक्षण किया जाएगा। म्यूजियम का आधुनिक ड्राइंग और डिजाइन भी इसी योजना का हिस्सा होगा। डॉ. शिव कुमार मिश्र ने बताया कि यह पूरा प्राक्कलन डुमरांव राज परिवार को सौंप दिया गया है। राशि की स्वीकृति मिलते ही संरक्षण और म्यूजियम निर्माण का कार्य शुरू कर दिया जाएगा। डुमरांव की ऐतिहासिक पहचान को सहेजने की यह पहल आने वाली पीढ़ियों के लिए विरासत को जीवंत रखने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।

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