हिंदी और बेटियों का संरक्षण जरूरी : शशि भूषण

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संदर्भ मंच पर गोष्ठी में कवियों व विद्वानों ने रखी अपनी बात                                                                        बक्सर खबर। हिंदी दिवस पखवाड़ा और बेटी दिवस के मौके पर “संदर्भ” साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच की ओर से स्टेशन रोड स्थित एक निजी भवन में साहित्यिक गोष्ठी सह परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में हिंदी भाषा की मौजूदा स्थिति और बेटियों की अहमियत पर चर्चा और काव्य पाठ हुआ। गोष्ठी में वक्ताओं ने सवाल उठाया कि आज भी हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन पाई है? क्यों बच्चे हिंदी की पढ़ाई से कतराते हैं और अंग्रेजी स्कूलों की ओर भागते हैं? वक्ताओं ने माना कि हिंदी और बेटियों का संरक्षण ही भारत की असली विरासत को बचा सकता है। मंच अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने कहा कि हिंदी भाषा वह पेड़ है जिसकी छाया में रहकर ही हम अपने अधिकारों और कर्तव्यों को स्वाभिमान के साथ जी सकते हैं।

मंच महासचिव शशि भूषण मिश्र ने कहा कि हिंदी भाषा और बेटी संतान का संरक्षण अति आवश्यक है। बेटियां नहीं रहेंगी तो पारिवारिक रिश्तों की रीढ़ टूट जाएगी और समाज बिखर जाएगा। अरुण मोहन भारवि ने कहा कि पढ़ी-लिखी बेटी जहां जाती है, वहां विद्यान और उजियारा फैलाती है। धन्नू लाल प्रेमातुर ने कहा कि मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारा तभी अच्छे लगते हैं जब लड़कियां पढ़ी-लिखी और खुशहाल हों। रत्नेश्वर ओझा राही ने कहा कि दूसरी भाषाएं सीखना जरूरी है, लेकिन हिंदी और भोजपुरी को आदर और सम्मान देना सबसे अहम है। हृदय नारायण शर्मा हेहर, वशिष्ठ पांडेय, उमेश पाठक रवि, नर्मदेश्वर उपाध्याय, गणेश उपाध्याय, वैदेही शरण श्रीवास्तव, राम प्रताप चौबे, ई. रामाधार सिंह, फारूख सैफी, गुड्डू सर और कैप्टन धर्मराज सिंह समेत कई कवियों और विद्वानों ने अपनी कविताओं और विचारों से सभी का मन मोह लिया। गोष्ठी में नगर के गणमान्य और साहित्य प्रेमी बड़ी संख्या में मौजूद रहे।

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