बक्सर खबर। पुलिस सहजता से किसी का मुकदमा दर्ज नहीं करती। ऐसा पीड़ित लोग बताते हैं। जब वह मुकदमा करती है। तो स्वयं ही उसपर मुहर लगाती हैं, क्या सही है और क्या गलत। उसे फर्जी कहने का अधिकार किसी को नहीं होता। लेकिन, जब मुकदमा करने वाला ही फर्जी नाम से शिकायत दर्ज कराए तो आप उसे क्या कहेंगे। अक्सर ऐसा तभी होता है। जब पैरवी और जुगाड़ दोनों सटीक हो। अगर ऐसा हो जाए तो फिर क्या कहने। धारा भी संगीन लगती है। ऐसा ही एक मामला खुलकर समाने आया है।
मुकदमा 721/19 जिसे दीपक लाल श्रीवास्तव ने दर्ज कराया है। उनके अनुसार दो लोगों ने उनके उपर जानलेवा हमला किया है। घटना स्टेशन के एक लाज की है। ऐसा मुकदमें में कहा गया है। मजे की बात है कि जिसने यह आरोप लगाया है। उसने स्वयं के भांजे और बहनोई को आरोपी बनाया है। पुलिस ने धारा भी संगीन लगाई है। यहां चौंकाने वाली बात यह है कि जिसने मुकदमा दर्ज कराया है। वह खुद ही फर्जी है। उसका नाम मुरली लाल श्रीवास्तव है। लेकिन, नाम बदलकर उसने दीपक लाल के नाम से केस दर्ज कराया है। घटना से जुड़े दूसरे पक्ष ने बताया कि हमें फर्जी ढंग से फसाने के लिए ऐसा किया है। जहां घटनास्थल दिखाया गया है। वहां सीसीटीवी भी लगा है। लेकिन, पुलिस ने उसकी जांच नहीं की। सिर्फ मनगढंत आरोप को सही मान मुकदमा दर्ज कर लिया। अब सवाल यह नहीं है कि पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया। अगर किया तो उसने सही गलत की पहचान क्यूं नहीं कि, यह सबसे अहम पक्ष है। ऐसा भी हो सकता है। मुदमा दर्ज कराने वाले ने पुलिस को धोखे में रखा हो। ऐसे मामले में पुलिस की निष्पक्षता उसकी सही जांच ही साबित कर सकती है।