चार माह से बकाया प्रोत्साहन राशि और समझौते को लागू कराने को लेकर नाराजगी, 14 सूत्री मांगों के साथ कार्यपालक निदेशक को सौंपेंगी ज्ञापन बक्सर खबर। जिले की सभी आशा एवं आशा फैसिलिटेटर 9 जुलाई को एक दिवसीय राष्ट्रीय हड़ताल में शामिल होंगी। यह हड़ताल देश के 10 प्रमुख श्रम संगठनों के आह्वान पर हो रही है, जिसमें सार्वजनिक प्रतिष्ठानों, संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के साथ-साथ स्कीम वर्कर्स भी भाग ले रहे हैं। बिहार राज्य आशा एवं आशा फैसिलिटेटर संघ ने इस हड़ताल में शामिल होकर जिले के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर धरना-प्रदर्शन का ऐलान किया है।
संघ का कहना है कि आशा और फैसिलिटेटर ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ हैं। इनके निरंतर प्रयास से संस्थागत प्रसव, टीकाकरण, मातृ-शिशु मृत्यु दर में गिरावट जैसे कार्यों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। कोरोना महामारी के दौरान भी इन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर सेवा दी, जिसकी सराहना डबल्यूएचओ, पटना हाईकोर्ट, बिहार सरकार, भारत सरकार और मानवाधिकार आयोग तक ने की थी। संघ ने आरोप लगाया कि पूर्व की हड़ताल में सरकार से हुए समझौते अब तक लागू नहीं किए गए हैं। चार-चार महीने से प्रोत्साहन राशि बकाया है और नई मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

9 जुलाई को सभी आशा व फैसिलिटेटर अपने-अपने स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रदर्शन करेंगी और कार्यपालक निदेशक, राज्य स्वास्थ्य समिति को ज्ञापन सौंपेंगी। उनकी प्रमुख मांगों में शामिल हैं: पूर्व के सभी समझौतों को लागू किया जाए। आशा कार्यकर्ताओं को सरकारी सेवक का दर्जा दिया जाए। जब तक दर्जा नहीं मिलता, न्यूनतम वैधानिक मजदूरी 26,000 दी जाए। कोरोना काल की ड्यूटी के लिए 10,000 की विशेष भत्ता दिया जाए। भ्रमण भत्ता 500 प्रतिदिन की दर से पूरे माह के लिए मिले। मुकदमे की वापसी और जनवरी 2019 के समझौते को लागू किया जाए। राज्य उपाध्यक्ष सह जिला संयोजक अरुण कुमार ओझा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सभी आशा व फैसिलिटेटर से अपील की है कि वे 9 जुलाई को अपने-अपने केंद्रों पर एकजुट होकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करें और अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपें।