-छठे और शांतवें दिन की कथा के कुछ अंश
बक्सर खबर। संत मोरारी बापू ने कहा कि सदगुरू का सानिध्य भवसागर से बेड़ा पार करा देता है। अगर बहुत मुश्किले हों तो उसे परमात्मा अथवा गुरु चरण में समर्पित कर देना चाहिए। इससे आपको बड़ी राहत मिलती है। यह बातें उन्होंने सातवें दिन की कथा के दौरान कहीं। कथा प्रसंग के दौरान प्रभु श्रीराम गुरू के साथ बक्सर से जनकपुर तक पहुंच गए हैं। वर्तमान दौर का प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा लोग बदल रहे हैं। आधात्म से दूरी बढ़ रही है। कहा गया है, चरागों के बदले मका जल रहे हैं। नया है जमाना नई रौशनी है। लेकिन, आपको समझना होगा। क्या उचित है।

सांधक को ब्रह्मचर्य से शांति मिलती है : छठे दिन की कथा के अंश
बक्सर खबर। छठे दिन की कथा में बापू ने मानस अहिल्या को केन्द्रीत करते हुए निर्वाण उपनिषद की व्याख्या की। उसके पन्द्रह सूत्रों के बारे में उन्होंने लोगों को बताया। जिसमें विरह, वियोग, आनंद माला, आचार, धीरज, उदासी, कॉफीन, विचार दंड, माया, ममता, अहंकार के बारे में बताया। उन्होंने कहा साधक को ब्रह्मचर्य से शांति मिलती है। वैसे तो तीन युगों में तीन महान ब्रह्मचारी हुए हैं। सतयुग में सनत कुमार, त्रेता में हनुमान जी एवं द्वापर में भिष्म। लेकिन, इसके अलावा भी अपने साधना, तपस्या और धर्म परायणता से बहुत से लोग ब्रह्मचारी हुए हैं। बापू ने कहा इन सबमें प्रेम बहुत बड़ा तत्व है। प्रेम सच्चा होतो वह धीरे-धीरे भक्ति में बदल जाता है। उसी विरह और वियोग का भी महत्व है। उससे बड़ा उपदेश नहीं होता। हर व्यक्ति को अपने आचार धर्म का पालन करना चाहिए।


































































































