विरक्त संत श्री रामचरित्र दास जी महाराज का साकेत वास, गंगा में ली जलसमाधि

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हनुमत धाम से कॉलेज घाट तक निकली अंतिम यात्रा में उमड़े श्रद्धालु, नम आंखों से दी विदाई                       बक्सर खबर। जिले के लिए रविवार का दिन शोकपूर्ण रहा। पूज्य राष्ट्रीय संत भक्त शिरोमणि श्री नारायण दास भक्तमाली जी के प्रथम कृपा पात्र विरक्त संत श्री रामचरित्र दास जी महाराज (महात्मा जी) ने 86 वर्ष की आयु में शनिवार की रात्रि 10 बजे साकेत की लीला में प्रवेश किया। उनके महाप्रयाण की सूचना मिलते ही श्रद्धालुओं और शिष्यों में शोक की लहर दौड़ गई। रविवार की सुबह 11 बजे उनकी अंतिम यात्रा हनुमत धाम मंदिर, कमरपुर से निकली, जो बलुआ, नई बाजार, पाण्डेय पट्टी, बाजार समिति रोड, अंबेडकर चौक होते हुए स्टेशन रोड से कॉलेज गेट तक पहुंची। इसके पश्चात कॉलेज घाट पर गंगा में विधि-विधान के साथ जलसमाधि दी गई। अंतिम दर्शन के लिए अपार जनसमूह उमड़ा।

सदर प्रखंड के बलुआ गांव में वर्ष 1939 में पूज्य दूधनाथ सिंह एवं माता सोनिया देवी के घर जन्मे महात्मा जी बचपन से ही विरक्ति की ओर उन्मुख थे। शास्त्रीय विधि से उनका नामकरण हृदय नारायण हुआ, लेकिन अल्प आयु से ही लंगोटी धारण और गंगा स्नान की प्रवृत्ति दिखाई देने लगी। माता-पिता के आग्रह के बावजूद उन्होंने गृहस्थ जीवन स्वीकार नहीं किया। पूज्य मामाजी महाराज, फलहारी बाबा एवं पूज्य रामभद्राचार्य जी से विरक्ति की दीक्षा प्राप्त कर उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास जी के समस्त ग्रंथों सहित गुरुदेव के सभी पद कंठस्थ कर लिए। रामकथा के दौरान उनके नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगती और श्रोता भाव-विह्वल हो उठते।

मेधावी छात्र रहे महात्मा जी ने एमवी कॉलेज के हिंदी विभाग में अध्ययन किया और बाद में मध्य विद्यालय पांडेय पट्टी में शिक्षक रहे। भजन-कीर्तन और ठाकुर जी की सेवा के लिए उन्होंने नौकरी तक त्याग दी। श्रीराम मंदिर निर्माण आंदोलन के दौरान वर्ष 1990 में धर्माचार्य के रूप में उन्होंने अहम भूमिका निभाई और 12 दिन जेल में भी रहे। जेल में रहते हुए भी उन्होंने कैदियों को कथा सुनाकर धर्म के प्रति जागरूक किया। सरल, सौम्य और करुण व्यक्तित्व के धनी महात्मा जी का जीवन भक्ति, सेवा और त्याग का अनुपम उदाहरण रहा, जिसे क्षेत्र कभी नहीं भूल पाएगा।

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