रामायण के किस्सों से सजी प्राचीन मूर्तियां अब दिखेंगी सीताराम उपाध्याय संग्रहालय में

0
111

चौसा मृण्मूर्ति दीर्घा में दिखेंगी गुप्तकाल की धरोहर, रामायण की झलक और सबसे प्राचीन ‘कल्याण सुंदर’ मृण्मूर्ति                                                               बक्सर खबर। चौसा गढ़ के पुरातात्विक उत्खनन में मिली रामायण युग की दुर्लभ टेराकोटा मृण्मूर्तियां अब आम लोगों के सामने होंगी। शहर के सीताराम उपाध्याय संग्रहालय में इन ऐतिहासिक मूर्तियों को समर्पित एक नई दीर्घा ‘चौसा मृण्मूर्ति दीर्घा’ बनाई जा रही है। इन मूर्तियों का डॉक्युमेंटेशन देश के जाने-माने मूर्तिशास्त्र विशेषज्ञों डॉ. उमेश चंद्र द्विवेदी और डॉ. जलज कुमार तिवारी ने किया है। दोनों विशेषज्ञों ने करीब 50 मृण्मूर्तियों का गहन निरीक्षण, अध्ययन और प्रलेखन कर उनकी ऐतिहासिक पहचान तय की।डॉ. द्विवेदी के अनुसार, चौसा गढ़ से गुप्तकाल अर्थात चौथी शताब्दी ईस्वी के टेराकोटा मंदिरों के अवशेष मिले हैं, जो भारत में अब तक के सबसे पुराने उदाहरण माने जा सकते हैं। रामायण की घटनाओं पर आधारित मूर्तियां जैसे—रावण द्वारा सीता हरण, युद्धरत राम-लक्ष्मण, सुग्रीव से राम की मैत्री, अशोक वाटिका में बंदरों का उत्पात, हनुमान, सुग्रीव, कुंभकर्ण, नंदी पर सवार भगवान शिव, युद्धरत कार्तिकेय आदि अत्यंत दुर्लभ और मनमोहक हैं।

इन मूर्तियों में ‘शिव-पार्वती विवाह’ पर आधारित एक कल्याण सुंदर मृण्मूर्ति भी शामिल है, जिसे देश में अब तक की सबसे पुरानी मूर्ति माना जा रहा है। वहीं ब्राह्मी लिपि में खुदे हुए अभिलेखों ने इसकी ऐतिहासिकता को और मजबूत किया है। डॉ. तिवारी बताते हैं कि इन मूर्तियों में महिलाओं की उपस्थिति भी खूब है, जिनकी केश सज्जा इतनी आकर्षक है कि देखने वाले तारीफ किए बिना नहीं रहेंगे। संग्रहालय प्रभारी डॉ. शिव कुमार मिश्र ने जानकारी दी कि सभी मूर्तियों की साफ-सफाई कराकर उन्हें नए सागवान लकड़ी से बने शो-केसों में सजाया जा रहा है। पटना से आए कारीगर इस काम में जुटे हैं और संग्रहालय का पूरा स्टाफ इस ऐतिहासिक पहल को मूर्त रूप देने में लगा हुआ है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here