बक्सर खबर : पत्रकारिता हमेशा चुनौतियों से गुजरी है। वह एक दौर था जब हम लोग एक जुनून के साथ पत्रकारिता करते थे। मुझे याद है खबरें नहीं प्रकाशित होने की स्थिति में स्वयं आरा से लेकर बक्सर तक की दौड़ लगाता था। उस समय गांव तक फोन की व्यवस्था नहीं थी। खबरों के संकलन के लिए थाने तक चक्कर लगाना होता था। रोज की यह दिन चर्या बन गई थी। जितना परिश्रम खबर को तलाशने में उतना ही समय खबर को अखबार के दफ्तर तक पहुंचाने में। मुझे याद है जब जरुरी खबर के लिए पैकेट लेकर जाड़े के दिन में आरा तक जाना पड़ता था। फिर फैक्स की व्यवस्था हुई। थोड़ी राहत मिली, लेकिन फैक्स की लागत अधिक थी। इस बीच मोबाइल फोन ने दस्तक दी। जिससे खबरों के आदान-प्रदान में बहुत ही सहूलियत मिली। परेशानियों के उस दौर में कई बार ऐसे मौके आए। जब लगा पत्रकारिता मुश्किल है। लेकिन हमने धैर्य रखा आज सबकुछ सुगम हो गया है। यह बातें डुमरांव अनुमंडल के पत्रकार रंजीत कुमार पांडेय ने कहीं। रविवार को उनसे बक्सर खबर ने अपने साप्ताहिक कालम इनसे मिलिए के लिए बात की। रंजीत ने कहा पत्रकारिता सतत संघर्ष का नाम है। इससे घबराने की जरुरत नहीं है। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के मुख्य अंश।
पत्रकारिता को बनाए मानव सेवा का माध्यम
बक्सर : रंजीत बताते हैं। मुझे याद है पत्रकारिता के दौरान मुझे एक छोटा बालक मिला था। उसके पिता बिरेश पासवान ने बताया वे बहुत परेशान हैं। बेटे के शरीर में चार हाथ और चार पैर थे। वर्ष 2006 का वह वर्ष था। मैं दैनिक जागरण में काम करता था। सिकरौल थाना के बेलहरी गांव निवासी उस बालक दीपक की स्टोरी हम लोगों ने अपने अखबार में छापी। नन्हें दीपक को खिलखिलाने का इंतजार। एक बार खबर छाप हम शांत नहीं हुए। यह सिलसिला चलता रहा। दीपक को किसी फरिश्ते का इंतजार। इस तरह लगातार उसके बारे में लिखते रहे। उन खबरों पर लखनउ में शोध कर रही अमेरिका की डाक्टर लुसी की नजर पड़ी। वह डुमरांव आई। मुझसे संपर्क किया। मैंने उस डाक्टर को बच्चे और उसके परिवार से मिलाया। वह बच्चे को अपने साथ अमेरिका ले गई। आपरेशन हुआ। आज दीपक स्वस्थ्य बालक की तरह किशोर हो गया है। इसी तरह का प्रयास हम लोगों ने दिल में छेद हो गए किशोर सरोज के लए चलाया। पूरा समाज आगे आया। पांच लाख रुपये जमा हुए। आपरेशन भी हुआ कुछ दिन वह स्वस्थ्य रहा। लेकिन वह जीवन की अंतिम जंग हार गया। इस तरह के प्रयास मीडिया में रहते हुए हमने किया। जो आज भी सुकून देता है।
पत्रकारिता जीवन
बक्सर : रंजीत बताते हैं वर्ष 2005 में मेरा जुड़ाव दैनिक जागरण से हुआ। जयमंगल पांडेय जी मुझे आरा के प्रभारी मृत्युंजय सिन्हा के पास ले गए। उन दिनों बक्सर और आरा का संस्करण एक था। वहां से चौगाई के लिए लिखने की अनुमति मिली। वहीं से हमारा सफर शुरु हुआ। जो आज तक जारी है। न बैनर बदला न मिजाज। इस क्रम में जयमंगल पांडेय और अविनाश भैया का भरपुर सहयोग मिला। जब कभी खबर भेजने में परेशानी होती। एक फोन पर हमारी खबरें वे स्वयं नोट कर लिख लिया करते थे। अब तो वह दौर आ गया है। घर बैठे खबरें छपने के लिए हम लोग आसानी से भेज पाते हैं।
व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : रंजीत पांडेय का जन्म 10 फरवरी 1977 को चौगाई प्रखंड के ठोरी पांडेयपुर गांव में हुआ था। पिता इन्द्रदेव पांडेय के चार संतानों में वे सबसे बड़े हैं। वर्ष 1993 में मुरार हाई स्कूल से मैट्रिक तथा 1999 में डीके कालेज डुमरांव से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस क्रम में वर्ष 2010 में उनकी शादी हो गई। आज वे एक बेटी व एक पुत्र के पिता हैं। पूरा परिवार सेट है। समाज में रंजीत की छवि सुलझे पत्रकार के रुप में है।