13 से 76 की उम्र वाले सीख रहे कैथी लिपि

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संग्रहालय में तीन दिवसीय कार्यशाला, अधिवक्ता, छात्र, शिक्षक, पत्रकार और रिटायर्ड अधिकारी ले रहे प्रशिक्षण              बक्सर खबर। कैथी लिपि के संरक्षण और प्रचार-प्रसार को लेकर आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में गजब का नजारा देखने को मिला। जहां एक ओर 13 साल के छात्र ने उत्साह से भाग लिया, वहीं 76 वर्षीय बुजुर्ग रामा शंकर तिवारी की सीखने की लगन ने सबका मन मोह लिया। यह कार्यशाला सीताराम उपाध्याय संग्रहालय और इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज पटना चैप्टर के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय संग्रहालय में चल रही है। प्रशिक्षण में अधिवक्ताओं की संख्या 11 रही, जबकि अमीन, छात्र-छात्राएं, शिक्षक, पत्रकार, सेवानिवृत्त कर्मी और कई पदाधिकारी भी शामिल हुए। प्रशिक्षक प्रीतम कुमार ने भोजपुरी, तिरहुत, मिथिला और मगध अंचलों की कैथी वर्णमाला सिखाई, जबकि वकार अहमद ने पांडुलिपियों का अभ्यास करवाया। प्रतिभागियों ने भोजपुरी भाषा में लिखी पांडुलिपियों को पढ़ने का भी अभ्यास किया।

संग्रहालय प्रभारी डॉ. शिव कुमार मिश्र ने बताया कि बक्सर क्षेत्र में करीब डेढ़ हजार वर्ष पूर्व ब्राह्मी लिपि का उपयोग होता था, जिसका प्रमाण चौसा गढ़ की टेराकोटा मूर्तियों और बामन की प्रस्तर प्रतिमा पर अंकित अभिलेखों से मिलता है। ब्राह्मी के बाद सामान्य लेखन में कैथी लिपि का प्रचलन हुआ। उन्होंने बताया कि कैथी में संयुक्ताक्षर नहीं होने के कारण संस्कृत ग्रंथों का लेखन इसमें नहीं किया जाता था। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के शोध छात्र प्रीतम कुमार, जो कैथी लिपि पर पीएचडी कर रहे हैं, ने जानकारी दी कि अकबर काल के भी कैथी शिलालेख मिले हैं। उनके अनुसार जमीन से जुड़े मामलों में आज भी कैथी लिपि का ज्ञान न्यायिक दृष्टिकोण से जरूरी है।

कैथी लिपि कार्यशाला में शामिल लोग

कार्यशाला में बसंत कुमार, सुनील कुमार चौरसिया, सुरेंद्र कुमार पांडेय, शिवजी पांडे, शिवम् मिश्रा, अभिजीत कुमार, अजय कुमार तिवारी, शिबू कृष्णा, रोहितेश कुमार मिश्र, हरेराम पांडे, प्रिंस कुमार सिन्हा, मयंक कुमार सिन्हा, जितेन्द्र चौबे उर्फ झब्बू जी, सुनील चौरसिया,राम मुरारी,विमल यादव समेत दर्जनों लोगों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।

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