बक्सर खबर। गुरू बैठ कर समाचार माध्यमों से शहर का हाल जानने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन, कुछ ऐसी लगातार खबरें मिली। जिनको पढ़कर माथा ठनक गया। सोचने लगे अजीब दौर चल रहा है। जहां दान करना चाहिए। वहां कुछ मिला कमाने के चक्कर में पड़े हैं। उसके पिछे कुछ मिला पागल होके घूम रहे हैं। हालात इतने बदल चुके हैं कि कुछ नहीं मिल रहा है तो कुछ मनई गोबर सूंघ के बता रहे हैं। यहां कुछ महक रहा है। अरे काहे परेशान हो, गोबर महक भले रहा है। उसमें पलने वाला कीटाडू किसी को डंसता नहीं है। काहे कि गोबर गाय का है।
लेकिन, तुम लोग जो गंदगी फैला रहे हो। उससे समाज बिगड़ रहा है। खुब खबर छपी लेकिन, यह पता नहीं चला। कितनी गाय व बछड़े पल रहे हैं। पिछले अथवा इस साल में कितने ने दम तोड़ा और कितने बीमार हैं। यहां पशुपालन विभाग की चलंत एंबुलेंस कितनी बार आई। जिससे यह पता चलता, पशुपालन विभाग के दावे की क्या है सच्चाई। कौन है इस शहर का बड़ा दानदाता। जिसने गायों के लिए दान दिया है। यह सब बातें गौड़ है, गिनती हो रही है, दुकानों की न की बीमार गायों की। अरे भ्रष्टाचार देखना है तो पड़ोस में जाओ।
देखो सिंचाई विभाग की जमीन सटे हैं। कौन-कौन कितना कब्जा जमा लिया है। दरगाह दरिया हुआ जा रहा है। सरकारी पैसे से परिसर चमक रहा है। कहीं लाइट लगी है तो कहीं सेड। न बोर्ड लगा न काम का ब्योरा। इस तरफ किसी की नजर नहीं जा रही। सड़क बनते ही दरक रही है और नाली का ढक्कन बच्चन के धक्का से भहरा रहा है। तमाशा चारो और पर है न जाने क्यूं इन सब को गोबर महक रहा है। यही सोच का गुरु का माथा गरम हो रहा है। (गुरू गरम है, बक्सर खबर का साप्ताहिक कॉलम है। जो प्रत्येक शनिवार को प्रकाशित होता है। यह सच्ची खबरों पर आधारित है)