कैथी लिपि कार्यशाला के समापन पर इतिहासकार डॉ. पंकज झा ने किया विमोचन बक्सर खबर। स्थानीय सीताराम उपाध्याय संग्रहालय एवं इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज पटना चैप्टर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय कैथी लिपि कार्यशाला के समापन समारोह में एक खास उपलब्धि दर्ज हुई। इस मौके पर रामकथा पर आधारित चौसा गढ़ से प्राप्त दुर्लभ मृण्मूर्तियों पर केन्द्रित ब्रोश्योर अर्थात लघु पुस्तिका का लोकार्पण वरिष्ठ इतिहासकार और चंदौली स्थित पंडित कमलापति त्रिपाठी राजकीय महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. डॉ. पंकज कुमार झा ने किया। उन्होंने संबोधन में कहा, ‘‘भाषा और लिपि किसी भी समाज को सशक्त बनाती है। इनके संरक्षण और प्रचार-प्रसार से संस्कृति की जड़ें मजबूत होती हैं।’’
समारोह के संचालन और आयोजन की कमान संग्रहालय प्रभारी डॉ. शिव कुमार मिश्र ने संभाली। उन्होंने सबसे पहले कार्यशाला में शामिल वरिष्ठ नागरिक प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किया। अपने वक्तव्य में डॉ. मिश्र ने ऐतिहासिक संदर्भ साझा करते हुए बताया कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चम्पारण के किसानों की गवाही के समय कैथी एवं फारसी के जानकार वकीलों, यथा- ब्रजकिशोर प्रसाद, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, धरणीधर प्रसाद, रामनौमी प्रसाद आदि से सहयोग लिया था। रामकथा पर आधारित चौसा गढ़ से प्राप्त दुर्लभ मृण्मूर्तियों से संबंधित ‘ रेयर टेराकोटा फिगरिन्स फ्राम चौसा गढ़ ‘एवं ‘चौसा गढ़ से प्राप्त दुर्लभ मृण्मूर्तियां ‘नामक क्रमशः अंग्रेजी एवं हिन्दी में ब्रोश्योर संग्रहालय द्वारा प्रकाशित की गई है।

डॉ मिश्र द्वारा लिखित इस ब्रोश्योर से रामायण आधारित मृण्मूर्तियों के विषय में संसार के शोधार्थी लाभ उठायेंगे। हाल ही में ब्रिटेन से शोधार्थी यहां आकर अनुसंधान की है। ब्रोश्योर का परिचय देते हुए डॉ मिश्र ने कहा कि महाभारत कथा पर आधारित विश्वामित्र -मेनका की प्रेमकथा एवं उनके संतान शकुंतला को 1600 साल पहले ही चौसा के शिल्पियों द्वारा मिट्टी पर उकेरा गया था। इसी तरह शिव पार्वती परिणय मृण्मूर्ति भी सबसे पुरानी एवं दुर्लभ है। राम – लक्ष्मण द्वारा कुंभकर्ण वध, कुंभकर्ण,सुग्रीव एवं हनुमान से संबंधित मृण्मूर्तियां भी दुर्लभ है। इसी तरह शिव,नंदी एवं भृंगी ऋषि, सीता एवं राम, सीता हरण, हनुमान, त्रिसिरा, सीता आदि की दुर्लभ मृण्मूर्तियों का परिचय भी ब्रोश्योर में दी गई है।

2012-13 एवं 2013-14 सत्र में संग्रहालय, बिहार के तत्कालीन निदेशक डॉ उमेश चन्द्र द्विवेदी द्वारा चौसा गढ़ का उत्खनन कराया गया था उसी क्रम में ये दुर्लभ मृण्मूर्तियां मिली थी। 76 वर्षीय प्रतिभागी हरे राम पांडेय, बिहारी सिंह यादव, अधिवक्ता संगीता कुमारी, प्रशिक्षक प्रीतम कुमार एवं वकार अहमद, कल्पना कुमारी सहित अनेक प्रतिभागियों ने अपने विचार रखे। इस अवसर पर बसंत कुमार, अभिजीत कुमार, राम मुरारी, शशांक, विमल यादव, अनिकेत कुमार, मोहम्मद आशिक, रामरुप ठाकुर, अभिशेष चौबे,अभिनंदन कुमार सहित पत्रकार, बुद्धिजीवी एवं सभी प्रतिभागी उपस्थित रहे। कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।