रामलीला महोत्सव में दिखा धर्म-अधर्म का संग्राम

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रामलीला मंच पर मंचित हुआ भानु प्रताप कथा, रावण-कुंभकरण जन्म व तपस्या प्रसंग                               बक्सर खबर। रामलीला समिति द्वारा ऐतिहासिक किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर चल रहे विजयादशमी महोत्सव के तीसरे दिन मंगलवार की रात धार्मिक और सांस्कृतिक भव्यता का अद्भुत संगम देखने को मिला। वृंदावन से आए श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के कलाकारों ने स्वामी सुरेश उपाध्याय ‘व्यासजी’ के कुशल निर्देशन में “भानु प्रताप कथा, रावण-कुंभकरण जन्म व उनकी तपस्या” का जीवंत मंचन कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मंचन की शुरुआत महाराज मनु और महारानी सतरुपा के दरबार से हुई, जहां वे मंत्रिमंडल की सहमति से पुत्र को राजपाट सौंपकर तपस्या के लिए निकल पड़ते हैं।

कठोर तपस्या से प्रसन्न त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु और महेश उनके सामने प्रकट होते हैं, लेकिन मनु-सतरुपा समाधि से विचलित नहीं होते। अंततः भगवान विष्णु माता लक्ष्मी संग प्रकट होकर उन्हें राम सहित चार अंशों के रूप में पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं। समय बीतने के साथ मनु-सतरुपा, दशरथ और कौशल्या के रूप में अयोध्या में जन्म लेते हैं और राम-कथा का सूत्रपात होता है। दूसरी ओर, षड्यंत्र का शिकार बने प्रतापी राजा प्रताप भानु ब्राह्मणों के शाप से रावण, कुंभकरण और विभीषण के रूप में जन्म लेते हैं। कठिन तपस्या कर वरदान पाने के बाद रावण और कुंभकरण अधर्म का मार्ग पकड़ते हैं, जबकि विभीषण भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं। रावण के अत्याचार से संत, गौ और ब्राह्मण व्यथित हो उठते हैं और पृथ्वी अधर्म के बोझ से कांपने लगती है।

दिन के समय मंच पर नंद महोत्सव और पूतना वध प्रसंग का जीवंत मंचन हुआ। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में पूरा गोकुल झूम उठा। नंद-यशोदा ने देवताओं का स्वागत कर उन्हें प्रसन्न विदा किया। वहीं कंस के आदेश पर गोकुल आई राक्षसी पुतना ने विषाक्त स्तनपान से कृष्ण की हत्या की कोशिश की, लेकिन बालक कृष्ण ने उसका प्राण हर लिया। इस अद्भुत दृश्य को देखकर दर्शक भावविभोर हो उठे।

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