सदाचारी दंपति ही समाज के संस्कारों के निर्माता होते हैं: प्रेमाचार्य पीताम्बर जी

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रामेश्वर नाथ मंदिर में राम कथा के पांचवें दिन हुआ सीता-राम विवाह प्रसंग, श्रद्धालु हुए भावविभोर                             बक्सर खबर। “परिवार समाज की पहली इकाई है और विवाह उसका आधार। सदाचारी दंपति न सिर्फ परिवार के बल्कि पूरे समाज के लिए संस्कारों और मानवीय मूल्यों के रक्षक और जनक होते हैं।” यह बातें रामरेखा घाट स्थित रामेश्वर नाथ मंदिर में आयोजित श्रीराम कथा के पांचवें दिन परम पूज्य स्वामी प्रेमाचार्य पीताम्बर जी महाराज ने कहीं। उन्होंने कहा कि आज के भौतिकवादी युग में मानवीय मूल्यों का लगातार ह्रास हो रहा है। इसका सीधा असर हमारे पारंपरिक पारिवारिक ढांचे पर पड़ा है। विवाह जैसा पवित्र संस्कार अब दिखावे और आडंबर का माध्यम बनता जा रहा है। आज का युवा वर्ग विवाह के उद्देश्य और उसके दायित्वों से अनजान होता जा रहा है।

कथावाचक स्वामी प्रेमाचार्य जी ने श्रीराम और सीता के विवाह प्रसंग का रोचक और भावनात्मक वर्णन किया। उन्होंने बताया कि कैसे राजा जनक के दरबार में रखे भगवान शिव के भारी धनुष को एक दिन सीता ने सफाई करते समय उठा लिया। इस पर जनक को आश्चर्य हुआ और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, वही सीता का वर होगा। स्वयंवर के दिन एक-एक कर राजा उस धनुष को उठाने में विफल रहे। अंत में गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से श्रीराम ने जब धनुष उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाई, तो वह टूट गया और विवाह का मार्ग प्रशस्त हुआ। राम और सीता का विवाह बड़े धूमधाम से सम्पन्न हुआ।

रामेश्वर नाथ मंदिर में श्रीराम कथा सुनती महिलाएं

राम-सीता विवाह की झांकी में राजा जनक, दशरथ, गुरु वशिष्ठ जैसे पात्रों की प्रस्तुति देख श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। पूरा वातावरण भक्ति और उल्लास से भर गया। स्वामी जी ने बताया कि पूजा में भाव की महत्ता होती है। प्रभु को पाने के लिए प्रेम और अनुराग आवश्यक है, न कि आडंबर। उन्होंने कहा कि जब हम किसी मनोकामना की पूर्ति हेतु पूजा करते हैं और वह पूरी हो जाती है, तब पूजा छोड़ने के बजाय उसे और बढ़ा देना चाहिए। प्रभु भक्तों को वही देते हैं जिसकी उन्हें सच में जरूरत होती है। अगर जीवन में कुछ नहीं मिल रहा हो, तो बार-बार वही मांगने के बजाय मांगने की वस्तु बदलकर देखनी चाहिए। भगवान की दृष्टि हमारे कल्याण पर होती है। सीता-राम विवाह की यह आध्यात्मिक प्रस्तुति श्रद्धालुओं के लिए भावनाओं से जुड़ने का सशक्त माध्यम बनी। पूरे कथा स्थल पर धार्मिक उल्लास, भक्ति और श्रद्धा का माहौल छाया रहा।

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