-पांच तीर्थ स्थलों का भ्रमण कर श्रद्धालु मनाते हैं त्रेता युग की परंपरा
बक्सर खबर। सिद्धाश्रम की मशहूर पंचकोशी यात्रा नौ नवंबर से प्रारंभ हो रही है। मार्गशीर्ष माह (अगहन) के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को यह परिक्रमा प्रारंभ होती है। रामरेखा घाट से श्रद्धालु अहिल्या धाम अहिरौली तक की यात्रा करते हैं। त्रेता युग में महर्षि विश्वामित्र के साथ प्रभु श्रीराम आए थे। यहां माता का उद्धार हुआ था। इस स्थान पर एक भव्य मंदिर है। लोग उस स्थान पर दर्शन पूजन करते हैं। यहां जलेबी और अन्य पकवान खाने का विधान है। मंदिर के समीप ही अहिरौली बड़ी मठीया है। जहां श्रद्धालु विश्राम करते हैं। इस मेले का समापन 13 नवंबर को अर्थात पांचवें दिन चरित्रवन में होगा। जहां लोग लिट्टी-चोखा का प्रसाद बनाते और खाते हैं। यह मेला पूरे देश में लिट्टी-चोखा मेला के नाम से मशहूर है।
पांच दिन कहां-कहां की होती है परिक्रमा
बक्सर खबर। पंचकोशी मेले के दौरान पहला पड़ाव 9 को अहिरौली में होगा। यहां जलेबी और पकवान खाने का प्रचलन है। अगले दिन 10 को यात्रा नारद मुनि के आश्रम पहुंचेगी। इस गांव का नाम फिलहाल नदांव है। यहां एक छोटा व प्राचीन शिव मंदिर भी है। जिसमें श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। नुआंव में खिचड़ी का प्रसाद बनता है। 11 को यह यात्रा भभुवर जाएगी। जहां भार्गव मुनि का आश्रम हुआ करता था। यहां भी एक शिव मंदिर है। और प्राचीन तालाब भी। जिसे भार्गवेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
तालाब के बारे में ऐसी चर्चा है लक्ष्मण जी ने तीर चलाकर इस सरोवर का निर्माण किया था। लोग यहां चूड़ा-दही का प्रसाद ग्रहण करते हैं। चौथा पड़ाव है उद्दालक मुनि के आश्रम नुआंव में। यहां 12 नवंबर को मेला लगेगा। नुआंव गांव आबादी बढ़ने के कारण दो जगह बंट गया है। बड़का नुआंव और छोटका नुआंव। यहां लोग सत्तू-मूली का प्रसाद ग्रहण करते हैं। यहां भी कई छोटे बड़े शिव मंदिर हैं। मेले का पांचवा और अंतिम पड़ाव 13 को चरित्रवन में लगेगा। जहां प्रभु श्रीराम ने अपने गुरुदेव विश्वामित्र ऋषि के साथ लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण किया था। इसी वजह से यह मेला पूरे भारत में प्रसिद्ध है।


































































































