आधुनिक खेती के गुर सीखने पहुंचीं छात्राएं

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फाउंडेशन स्कूल की कक्षा 8 की छात्राओं ने किया कृषि विज्ञान केंद्र का शैक्षणिक भ्रमण                               बक्सर खबर। किसान अब सिर्फ हल-बैल से नहीं, मशीनों और वैज्ञानिक तरीकों से खेती कर रहे हैं। इसी सच्चाई को करीब से जानने के लिए गुरुवार को शहर के फाउंडेशन स्कूल की कक्षा 8 की छात्राएं कृषि विज्ञान केंद्र के शैक्षणिक भ्रमण पर पहुंचीं। यह विजिट स्कूल के विज्ञान विभाग की पहल पर आयोजित किया गया, जिसमें विज्ञान शिक्षक आदित्य वर्धन, संध्या मैम और विद्यालय के प्राचार्य मनोज त्रिगुण ने मार्गदर्शन किया। भ्रमण का मकसद छात्राओं को किताबों से आगे ले जाकर खेती के आधुनिक तरीकों से रूबरू कराना था।

छात्राओं को दो समूहों में बांटकर उन्हें बीज प्रसंस्करण इकाई और बीज भंडारण गोदाम दिखाया गया। यहां उन्हें बताया गया कि बीजों को किस तरह ग्रेडिंग, उपचार और संग्रहण किया जाता है ताकि किसानों को बेहतर उपज मिले। छात्राओं को जलवायु सहनशील फसल प्रणाली यानी क्लाइमेट रेजिलिएंट क्रॉपिंग सिस्टम के बारे में जानकारी दी गई। विशेषज्ञों ने समझाया कि कैसे बदलते मौसम में भी टिकाऊ और उत्पादनक्षम खेती की जा सकती है। समेकित कृषि प्रणाली के तहत छात्राओं ने देखा कि कैसे एक ही जगह मछली पालन, बागवानी, अनाज उत्पादन और पशुपालन को मिलाकर खेती की जाती है। इससे आय भी ज्यादा होती है और संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है। खास आकर्षण रहा हैप्पी सीडर, जो बिना पराली जलाए सीधे बुवाई करने में सक्षम है। इसके अलावा, छात्राओं को निराई, जुताई, छिड़काव और सिंचाई से जुड़ी मशीनों के बारे में भी बताया गया।

छात्राओं को संबोधित करते कृषि वैज्ञानिक डॉ रामकेवल

सब्जियों की नर्सरी, खासकर फूलगोभी और पत्तागोभी की खेती को भी उन्होंने नजदीक से देखा। इस भ्रमण को खास बनाया कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों ने। वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रभारी हरि गोविंद, डॉ. रामकेवल, फार्म मैनेजर आरिफ परवेज, पर्सनल असिस्टेंट रवि चटर्जी और उद्यान विशेषज्ञ किरण भारती ने सरल और रोचक तरीके से छात्राओं को खेती से जुड़े हर पहलू को समझाया। छात्राओं में इस भ्रमण के बाद खेती के प्रति न सिर्फ रुचि बढ़ी बल्कि नवाचार और पर्यावरण के प्रति चेतना भी विकसित हुई। विद्यालय के प्राचार्य मनोज त्रिगुण ने कृषि विज्ञान केंद्र का आभार जताते हुए कहा कि ऐसे भ्रमण छात्रों में वैज्ञानिक सोच पैदा करते हैं और उन्हें भारतीय कृषि की नई संभावनाओं से जोड़ते हैं।

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