मन के देवता जीतें तो जीवन बने सुखमय : आचार्य रणधीर ओझा

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कथा के तीसरे दिन सुनाई भगवान के अवतार, समुद्र मंथन और ध्रुव चरित्र की कथा                                          बक्सर खबर। नगर के चरित्रवन स्थित बुढ़वा शिव मंदिर परिसर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को मामाजी के कृपापात्र आचार्य रणधीर ओझा ने भक्तों को भगवान के चौबीस अवतारों, समुद्र मंथन और ध्रुव चरित्र की रोचक कथाओं का श्रवण कराया। उन्होंने कहा कि यह संसार भगवान का सुंदर बगीचा है, जिसमें चौरासी लाख योनियों के रूप में अलग-अलग प्रकार के फूल खिले हैं। जब कोई व्यक्ति अपने दुष्कर्मों से इस बगीचे को नष्ट करने की कोशिश करता है, तब भगवान अवतार लेकर सज्जनों का उद्धार और दुष्टों का संहार करते हैं।

समुद्र मंथन प्रसंग पर उन्होंने कहा कि मानव हृदय ही सागर है, जिसमें अच्छे-बुरे विचार देवता और दानव बनकर लगातार मंथन करते रहते हैं। सती चरित्र का उदाहरण देते हुए बताया कि भगवान शिव की बात न मानने से सती को अग्नि में स्वाहा होना पड़ा, जिससे यह शिक्षा मिलती है कि अहंकार और अवज्ञा पतन का कारण बनती है। ध्रुव चरित्र सुनाते हुए आचार्य श्री ने कहा कि भक्ति की कोई उम्र नहीं होती। बालक ध्रुव ने दृढ़ निश्चय और श्रद्धा से तपस्या कर भगवान को प्रसन्न किया और वैकुंठ लोक प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि कलियुग में भी यदि मनुष्य भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का पालन करे तो उसका जीवन सफल हो सकता है।

फोटो – आचार्य रणधीर ओझा के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत कथा सुनते श्रद्धालु

राजा परीक्षित के प्रसंग का उल्लेख करते हुए आचार्य श्री ने बताया कि अहंकार व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है। जीवन में यदि पद और प्रतिष्ठा मिले तो उसे ईश्वर की कृपा मानकर भलाई में लगाना चाहिए। अंत में उन्होंने कहा कि जिसके भीतर देवता जीत जाते हैं, उसका जीवन सुखमय बन जाता है, और जिसके भीतर दानव हावी हो जाते हैं, उसका जीवन दुख और अशांति से भर जाता है।

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