आचार्य रणधीर ओझा ने सुनाए धैर्य, भक्ति और वैराग्य के प्रसंग बक्सर खबर। नगर के रामेश्वर नाथ मंदिर में सिद्धाश्रम विकास समिति के तत्वावधान में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन श्रोताओं को भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से भर देने वाले प्रसंग सुनाए गए। कथा का वाचन मामाजी के कृपापात्र आचार्य रणधीर ओझा जी महाराज ने किया। आचार्य श्री ने भावपूर्ण शैली में वर्णन किया कि किस प्रकार धर्मनिष्ठ और प्रजापालक राजा परीक्षित ने क्रोधवश शमीक ऋषि के गले में मृत सर्प डाल दिया। इस घटना के बाद ऋषि पुत्र शृंगी ने उन्हें सात दिन में तक्षक नाग के काटने का श्राप दे दिया। आचार्य ने कहा कि यही श्राप आगे चलकर राजा परीक्षित के मोक्ष का कारण बना और भागवत कथा श्रवण का आधार बना।
कथा के दौरान शुकदेव जी महाराज के प्रादुर्भाव का वर्णन हुआ। आचार्य श्री ने बताया कि शुकदेव जी गर्भ से ही ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर चुके थे और जन्म लेते ही गृह त्याग कर वन चले गए। यह प्रसंग वैराग्य और आत्मज्ञान की चरम अवस्था को दर्शाता है। ध्रुव जी की कथा सुनाते हुए आचार्य श्री ने कहा कि मात्र पांच वर्ष की उम्र में ध्रुव ने कठोर तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और ध्रुवलोक का वरदान पाया। यह प्रसंग बताता है कि सच्ची लगन और निष्ठा से बालक भी भगवान को पा सकता है।कथा में भगवान कपिलदेव द्वारा माता देवहूति को दिया गया उपदेश भी सुनाया गया। इसमें आत्मा और प्रकृति के भेद, मोह-माया से मुक्ति और योगाभ्यास का महत्व बताया गया।

कथा के अंत में देवी शती का प्रसंग सुनाया गया, जिन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा भगवान शिव का अपमान सहन न कर योगाग्नि में आत्माहुति दी। आचार्य श्री ने कहा कि यह कथा नारी के आत्मबल, अस्मिता और पति-भक्ति का जीवंत उदाहरण है। आचार्य रणधीर ओझा जी ने कहा कि श्रीमद्भागवत केवल पुराण नहीं, बल्कि जीवन की दिशा और दृष्टि है। जीवन की अंतिम यात्रा में भक्ति, वैराग्य और ज्ञान ही साथ चलते हैं। कथा श्रवण के दौरान सत्यदेव प्रसाद, रामस्वरूप अग्रवाल, संजय सिंह, मनोज तिवारी, पंकज उपाध्याय, सत्येंद्र ओझा समेत सैकड़ों भक्तगण मौजूद रहे।