काम करते हुए प्रभु का स्मरण ही सच्ची भक्ति : उमेश भाई

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संत सदगुरुदेव स्मृति महोत्सव में श्रीमद्भागवत कथा के आठवें दिन उमड़े श्रद्धालु                                         बक्सर खबर। सदर प्रखंड के कमरपुर स्थित हनुमत धाम मंदिर परिसर में चल रहे संत सदगुरुदेव स्मृति महोत्सव के तहत आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के आठवें दिन सोमवार को भक्तिभाव से ओत-प्रोत माहौल देखने को मिला। पूज्य व्यास उमेश भाई ओझा ने कथा का रसपान कराते हुए भगवान की नौवें स्कंध तक की लीलाओं का भावपूर्ण और सरल शब्दों में वर्णन किया। कथा के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु भावविभोर होकर प्रभु की महिमा में लीन नजर आए। प्रवचन के दौरान व्यास जी ने कहा कि मनुष्य के जीवन के सभी दुखों का मूल कारण संसार के छह विकार—काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर हैं। इन विकारों से मुक्ति का मार्ग संतों की संगति और पवित्र ग्रंथों के अध्ययन से ही संभव है। उन्होंने भगवान नृसिंह और भक्त प्रह्लाद की कथा के माध्यम से बताया कि सच्ची भक्ति किस प्रकार क्रोध को शांत कर मन को स्थिरता और शांति प्रदान करती है।

कथा के क्रम में ब्रह्मा जी द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की परीक्षा लेने और ग्वाल-बालों तथा बछड़ों को चुराने का प्रसंग सुनाया गया। व्यास जी ने बताया कि भगवान ने स्वयं उन ग्वालों और बछड़ों का रूप धारण कर ब्रह्मा जी के अहंकार और मोह को भंग कर दिया। अंत में ब्रह्मा जी ने प्रभु की शरण में जाकर अपनी भूल स्वीकार की। कथा का मुख्य आकर्षण गोवर्धन लीला रहा। व्यास जी ने बताया कि मात्र सात वर्ष की आयु में भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के अहंकार को चूर करने और ब्रजवासियों की रक्षा के लिए सात दिन और सात रात तक गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर धारण किए रखा। इस प्रसंग के माध्यम से भगवान के ऐश्वर्य और भक्तवत्सल स्वरूप के दर्शन कराए गए। कथा के समापन पर व्यास जी ने कहा कि संसार का सुख-दुख बदलता रहता है, लेकिन प्रभु का नाम सदा रहने वाला है। उन्होंने संदेश दिया कि संसार के सभी कार्यों को भगवान का कार्य मानकर करते हुए निरंतर प्रभु का स्मरण करना ही सच्ची भक्ति है।

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