भक्ति में कोई जाति-वर्ण का भेद नहीं

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कर्म बिगड़ने पर मनुष्य भी बन जाता है राक्षस : उमेश भाई ओझा                                                                      बक्सर खबर। ब्रह्मलीन पूज्य संत श्री रामचरित दास जी की प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर कमरपुर स्थित हनुमत धाम मंदिर परिसर में आयोजित 18 दिवसीय आध्यात्मिक कार्यक्रम के तहत चल रही श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन श्रद्धालु भक्ति रस में सराबोर नजर आए। कथा व्यास उमेश भाई ओझा के श्रीमुख से भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और भक्ति की महिमा का भावपूर्ण वर्णन सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। सातवें दिन की कथा का शुभारंभ बड़ी दूर नगरी कैसे आऊं रे कन्हाई, और आज नंद द्वारे बाजे बधैया जैसे सुमधुर भजनों से हुआ। व्यास पीठ से संबोधित करते हुए उमेश भाई ओझा ने कहा कि कर्म बिगड़ने पर मनुष्य भी राक्षस बन जाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जरासंध, शिशुपाल और कंस राजा होकर भी अपने कुकर्मों के कारण मानवता के शत्रु बने और राक्षस कहलाए।

उन्होंने स्पष्ट किया कि जन्म से कोई श्रेष्ठ या नीच नहीं होता, बल्कि व्यक्ति का आचरण ही उसे देवतुल्य या राक्षस बनाता है। भक्ति और कर्मकांड के अंतर को समझाते हुए व्यास जी ने कहा कि कर्मकांड का अधिकार सीमित हो सकता है, लेकिन भक्ति का अधिकारी हर कोई है। जटायु और माता शबरी का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि भक्ति में जाति या वर्णाश्रम का कोई भेद नहीं होता। सच्चे मन से भगवान को स्मरण करने वाले को प्रभु अवश्य अपनाते हैं। कथा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अघासुर, बकासुर और धेनुकासुर जैसे असुरों के वध का विस्तार से वर्णन किया गया। व्यास जी ने बताया कि कैसे प्रभु ने अहंकारी इंद्र और ब्रह्मा के गर्व को तोड़कर अपनी दिव्यता प्रकट की। कंस का वध कर मथुरा की गद्दी पर राजा उग्रसेन को बैठाया और माता-पिता देवकी-वसुदेव को कारागार से मुक्त कराया। भजन संध्या में व्यास चंदन राय, आर्यन बाबू, चितरंजन पांडेय, कृष्णा बेदर्दी, गुड्डू पाठक, उमेश जायसवाल सहित मामा जी महाराज के परिकरों ने अपनी सुमधुर प्रस्तुतियों से श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया।

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