जवइनिया गांव इसी मॉडल पर होगा दोबारा आबाद, बिहार में अब नहीं उजड़ेंगे बाढ़ प्रभावितों के आशियाने बक्सर खबर। बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ और कटाव से उजड़ते घरों की पीड़ा अब शायद अतीत बनने की ओर है। सदर प्रखंड के कृतपुरा गंगा घाट पर दो साल पहले तैयार किया गया पानी पर तैरने वाला घर अब राज्य सरकार की प्राथमिकता में शामिल हो गया है। इस अनोखे मॉडल को विकसित करने वाले इंजीनियर प्रशांत कुमार की पहल ने सरकार का ध्यान खींचा है। शनिवार को राज्य के मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत स्वयं मौके पर पहुंचे और इस तैरते घर का गहन निरीक्षण किया। प्रधान सचिव ने भोजपुर जिले के मौजमपुर में गंगा नदी में स्थापित इस तैरते घर को करीब आधे घंटे तक देखा, समझा और प्रशांत कुमार से विस्तार से बातचीत की। इस दौरान भोजपुर के डीएम तनय सुल्तानिया और एसपी राज भी मौजूद रहे। निरीक्षण के बाद सरकार ने बड़ा फैसला लिया। भोजपुर जिले के बाढ़ और कटाव में बह चुके जवइनिया गांव को इसी तर्ज पर दोबारा बसाने की दिशा में काम किया जाएगा। इसके लिए डीएम भोजपुर को पायलट प्रोजेक्ट तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं।
पायलट प्रोजेक्ट के तहत करीब दो लाख रुपये की लागत से बने तैरते घर के मॉडल पर काम होगा। इस घर में एक कमरा, किचन, बाथरूम और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं होंगी। वर्ष 2023 में प्रशांत कुमार ने जिले के लाढ़ोपुर से क्लाइमेट रेजिलिएंट हाउस की शुरुआत की थी। पहले मॉडल में दो कमरे और शौचालय के साथ जरूरी सुविधाएं विकसित की गई थीं। इसके बाद कम्युनिटी सेंटर और सिंगल रूम फ्लैट का मॉडल भी तैयार किया गया। अब सरकार इस पहल को बड़े पैमाने पर लागू करने की संभावनाओं पर गंभीरता से विचार कर रही है। इस परियोजना का एक खास हिस्सा है ‘मदर शिप’ यानी कम्युनिटी हाउस। इसे पटना के दीघा घाट पर स्थापित करने की योजना है। यहां बहुआयामी प्रशिक्षण शिविर योग व ध्यान केंद्र, आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग, स्थानीय रोजगार और तकनीकी कौशल से जुड़े कार्यक्रम चलाए जाएंगे। इंजीनियर प्रशांत कुमार का कहना है कि यह परियोजना जलवायु परिवर्तन की चुनौती के प्रति बिहार की अपनी सोच और वैश्विक सहयोग की भावना से निकली व्यावहारिक पहल है। हर साल बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित होते हैं, ऐसे में नदी किनारे रहने वाले समुदायों के लिए यह एक टिकाऊ समाधान हो सकता है।

यह तैरता घर पूरी तरह प्राकृतिक और पुनर्चक्रित सामग्री से तैयार किया गया है, ताकि लागत कम रहे और पर्यावरण पर न्यूनतम असर पड़े। यदि यह पायलट प्रोजेक्ट सफल रहा, तो बिहार के बाढ़-प्रभावित इलाकों में पुनर्वास की नीति को नई दिशा मिल सकती है। यहां राहत शिविरों की जगह स्थायी, जल-अनुकूल और स्थानीय समाधान केंद्र में होंगे। पानी पर तैरता यह घर सिर्फ एक मॉडल नहीं, बल्कि बाढ़ से जूझते बिहार के लिए नई उम्मीद बनकर उभरा है।






























































































