खबर है पर लिखने लायक नहीं है…

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बक्सर खबर। माउथ मीडिया –
आज गांव से बक्सर आने के क्रम में दानीकुटिया के पास बतकुच्चन गुरू से मुलाकात हो गई। सर पर हाथ रख बैठे दिखे तो मुझे आश्चर्य हुआ। बाइक खड़ी और उनके पास चला गया। मैंने पूछा आप और यहां, कैसे…? मेरी आवाज सुन उन्होंने उपर देखा। मुझे अपने पास पा उनके तनाव भरे चेहरे पर मुस्कान दिखी। अपने पास बैठने का इशारा कतरे बोले का गुरू कहा रहल एतना दिन। मैंने उनसे अपनी परेशानियां बताई। पत्रकारिता से काम नहीं चल पाता। रोजी रोटी के लिए बच्चों को पढ़ाने चला जाता हूं। मेरी यह बात सुनते ही वे एक दम से उखड़ गए। स्कूल… अरे गुरू हम यहां शहर से दूर आए रहे। आज अटल जी का अस्थि कलश ऐही राह से आने वाला रहा। हम ओकरा देखे ला यहां दूर आए थे। यहां घंटन से बइठे हैं। लेकिन यहां आके जो पता चला हमारा होश उड़ गवा। पता चला पत्रकार सब स्कूलन में जा के वसूली करत हैं सरवा। टटका मामला है कवनो चुन्नी स्कूल का । मेरी तरफ मुखातिब हो बोले… हमके त आज मालुम पड़ा। मीडिया वाले भी नहीं छापे रहे। सब त सब तोहरे खबरिया पर भी नाहीं दिखी रही।

हमने बचाव की मुद्रा में कहा ऐसा नहीं है। खबर थी पर छापने लायक नहीं थी। पूरे मामले की तस्दीक नहीं हो पाई थी। इस लिए छापना उचित नहीं लगा। इतना सुनते ही बतकुच्चन गुरू एकदम से लाल हो गए। लगा मुझे वहां से खदेड़ देंगे। उन्होंने फिर अपने सर पर हाथ रख लिया। कहने लगे हम जब से सुने हैं। यही सोच रहे हैं, मीडिया वाला सब खबर तलाशे ला घूमता है कि वसूली करे ला। मैंने कहा ऐसा नहीं है सभी लोग ऐसे नहीं हैं। लेकिन मेरी कोई बात अब संतुष्ट नहीं कर पा रही थी। वे बोले रहने दो गुरू अब तो हमरा जइसन फक्कड़ मनई के भी मीडिया वालन से बात करे ला दस बार सोचे पड़ी। इस सब सरवा बाजार में टहरे वाला छिपकुइयां हैं। जवन घूम-घूम के छोटे-छोटे पिलुआ खात हैंन। ससुर उ सब केतना घाघ हउन। जवन बइठे-बइठे अइसन मिला सब से वसूली करावत हउन। हम तो इ भी सुने हैं सब धूर्त मिल के सरउ संगठन बना लीन हैं। सारे सब वसूली के नया तरीका अनाए हैं। कवनो लूट-पाट फारम छपवाए हैं। ओकरा सहारे खूब वसूली हो रही है। उन सबका खबर का आप कबहूं छापे हैं…?

मुझे समझ में आ गया आज मामला तल्ख है। सफाई देना बेकार है। फिर भी मैंने कहा शहर में बहुत से लोग हैं कई मीडिया हाउस हैं, साहित्यकार हैं, कलमकार हैं, देश में न्याय की बात करने वाले लाल, पीले, हरे झंडे वाले हैं। सभी लोग सच का साथ देने का दम भरते हैं। सबका गुस्सा हमीं पर निकाल लिजिएगा। यह सुन थोड़े नरम हुए, मेरे पास आए और हमदर्दी व्यक्त करते हुए कहा। गुरू हम तो…हे दोष ना ही दे रहे हैं। लेकिन ए चोरवन का विरोध बहुते जरुरी है। लाला-पीला, साहित्य-वाहित्य का बात करना बेकार है। सब सरउ गुंडन के आगे हाथ जोड़त हैं और शरीफ आदमी के घूड़की देत हैं। मैंने उनसे वादा किया, आगे से हमारी कोशिश होगी। हर भ्रष्टाचारी की खबर जरुर छपे। मेरे इतना कहते ही उनके चेहरे की खुशी लौट आई। फिर मैंने उनसे इजाजत ली और अपने आशियाने की तरफ लौट आया।

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