जाने हो… विकास पुरुष हैं नेताजी

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बक्सर खबर। माउथ मीडिया
बतकुच्चन गुरु से गुरुवार की रात ही मुलाकात हो गई। कर्बला से मट्टी ले लौट रहे ताजियादारों के जुलूस को देखने के लिए वे टहल रहे थे। मेरी नजर उनपर पड़ी नहीं। लेकिन, उनकी आवाज कान तक पहुंची। आवाज सुन मैं उनके पास पहुंचा। वे बोले का हाल हौ, कुछ बताव। मैंने कहा कुछ नहीं उल्टी गिनती चल रही है। राजनीति तापमान के कारण माहौल बदल रहा है। सोशल मीडिया प्रपंच बढ़ा रही है। वे बीच में बोले शहर में बवाल हुआ रहा। हास्पिटलवा को ले के। मैंने हां में सर हिलाया। बतकुच्चन गुरु बोले झूठे हंगामा हो रहा है। नेतवा विकास पुरुष है। भले ही एसपी को न हटवा पाए तो का हुआ।

सरकार में ओकर बहुत पकड़ है। ओकर आपन आदमी सब है सरकार में। उ हमेशा बढिय़ा काम करे है। किला मैं कुछ दिन पहले कार्यक्रम हुआ रहा। उहां भी एगो कंपनी वाला सरकारी खजाने का धन बर्बाद कर रहा था। ओ का विरोध भी कराए रहे। ओके जनता के बहुत चिंता है। लोल त उ अध्यक्षा है। हर मामले में टांग अड़ा देवे है। और सब बताव तू शहर का कैसा चल रहा है। मैं ने कुछ जवाब नहीं दिया, पता नहीं कब भड़क जाए। वे बोले जा रहे थे। अब उनके निशाने पर त्योहार वाले थे।
त्योहार-त्योहार नहीं तनाव की गठरी है
बक्सर खबर। बतकुच्चन गुरु बोले आजकल लोग पढ़ लिख कर का सीख रहा है। हमारा बुझाता नहीं है। पहले कवनो त्योहार आता रहा तो अमन-चैन से सब बीत जाता रहा। अब तो जैसे त्योहार आता है। मारे डर के हाथ पैर फुल जाता है। पता नहीं ससुर कौन कहवां का कर दे। सबसे बुरा हाल तो अफसरवन सब का है। इ बइठक उ बइठक, रात-दिन परेशान। उहां कौन है, यहां कौन है, ड्यूटी में चुक हुआ तो गए काम से। कुल मिला के त्योहार सब तनाव का गठरी हो गवा है। सबे लोग डरे रहते हैं। कहीं कछु हो न जाए। एगो जमाना था त्योहार बीते पर लोग अफसोस करते थे। बड़ा सूना लग रहा है, का मउज था। अब त्योहार गुजर जाए तो लोग राहत की सांस लेते हैं। अफसर सब त एक दूसरे के बधाई देवे है। शांति पूर्ण त्योहार बीते ला आप सभी को बधाई। अब देखा डुमरांवे में संझा बेरा एगो नौजवान थोड़की सा लापरवाही में चल बसा। अपना जिला में कबहू ऐसा न हुआ रहा। हम तो कहते हैं कलंके लग गवा। यह कहते-कहते उनका चेहरा उतर गया। नौजवान के जाने का गम उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था। मायूस होकर बोले गुरु सामने दुर्गा पूजा हौ। हम तो अल्लाताला से दुआ करे हैं। कोई शरारत न करे, त्योहार को त्योहार रहने दो तनाव न बढ़ाओ। इतना कह वे चुप हो गए। मैंने पहली बार उनके चेहरे पर इतनी पीड़ा देखी। सच में बदलते वक्त के हिसाब से लोगों को स्वयं सोचना चाहिए। मैंने उनसे इजाजत ली और घर लौट आया।

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