काहो न कुत्तिया घुमाए न हेलीकाप्टर उड़ाए …

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बक्सर खबर। मैं बाजार की तरफ जा रहा था। तभी रास्ते में बतकुच्चन गुरू से मुलाकात हो गयी। वे अपनी तय जगह पर बैठे कुछ बुदबुदा रहे थे। मेरा सामना हुआ तो देखते ही बोले। आव गुरू का हाल हौ। मैंने अभिवादन किया और पास में बैठ गया। अक्सर गरज कर बोलने वाले बतकुच्चन गुरू बहुत धीरे से बोले। हमरा तो से कुछ पूछना है। उनकी बात सुनते मेरा माथा ठनका, कुछ विशेष है क्या? मैं सोच ही रहा था कि वे बोले, हम तोहरा मीडिया के देख रहे हैं। न हेलीकाप्टर उड़ाए न कुत्तिया घुमाए। का बात है समाचार लिखे में कवनो दिक्कत है।

मैं कुछ जवाब देता उससे पहले ही वे बोल पड़े। तोहके खबर छापे चाही। कौन का कहता है एकर फेरा में पड़े के जरुरत ना हौ। नेता के प्रचार हौ या कुतिया के समाचार। जिला के सब मीडिया वाले जम के छापे हैं। तबहु तु न छापे। मैंने हिम्मत जुटा के कहा, यह समाचार कम प्रचार ज्यादा था। इस लिए मैंने ऐसा किया। मेरे इतना कहते वे बिदक गए। तू अपने के का समझे हौ गुरू। ई दुनिया के हू के ना छोड़े वाली है। पंडित का कहानी सुने हैं का ना। अप्पन बेटा के साथ दान में मिले घोड़े को लेकर पंडित जा रहे थे। बिटवा के घोड़े पर बैठा दिए। राह में लोग टोके लगा, का जमाना है। बाप पैदल चले है… बेटा घोड़ा पर। यह सुने तो पंडित खुद भी बैठ गए। जौन देखा अब व कहे लगे दोनों कसाई हैं। एक ही घोड़ा पर दू-दू मनई सवार हैं। पंडित ने बेटे को उतार दिया। फिर जौन मिला देखें उ कहने लगे। का जमाना हौ बाप घोड़ा पर छोट बच्चा पैदल चले है। इतना कह गुरू थोड़ी देर के लिए रुके। मेरी तरफ देखा और पूछा … समझे की ना ही। मैंने कहा जी…। फिर मैं अपने रास्ते चल पड़ा। मैं मन ही मन सोच रहा था। सिर्फ एक बात को लेकर तो शायद ही मुझे वे टोके। इसके पीछे उनका इशारा कुछ और भी रहा होगा। (माउथ मीडिया बक्सर खबर का साप्ताहिक व्यंग कालम है। जो शुक्रवार को प्रकाशित होता है। आप अपने सुझाव हमें कमेंट के माध्यम से दे सकते हैं)

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