बक्सर खबर। जमाने-जमाने का फेर है कि कभी मिट्टी सोना हो जाती है, तो कभी सोना मिट्टी। लेकिन बात जब किसानों की होती है तो वे बेचारे जमाने के फेर में ऐसे फंसते हैं कि उनका जमाना कभी बदलता ही नहीं। यह अलग बात है कि उन्हीं के जमाने को बदलने के नाम पर देश की सरकारें बनती और बिगड़ती रहीं हैं। आज भी राजनीति के बाजीगर इस कवायद में भिड़े हुए हैं। वे बात तो किसानों को चांद पर पहुंचाने की कर रहे हैं, लेकिन खुद अगस्ता हेलीकॉप्टर और रफाएल पर बैठकर भारत के आसमान में चक्कर काट रहे हैं। बेचारे साधु प्रकृति के किसान अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं कि कब हेलीकॉप्टर और लड़ाकू जहाज नीचे आएं कि वे चांद की ओर रुख करें। फिलवक्त देश का आसमान इनसे निकलने वाले धुएं से धुंधला हो गया है।
यह तो हुई देश की बात। लेकिन जमाना तो ग्लोबल में लोकल और लोकल में ग्लोबल की झलक देख और दिखला देने का है। और लोकल झलक दिखाने वाले आइने में किसानों की तस्वीर उस ढोर डांगर की तरह है जिसको मनचाही दिशा में ले जाने के लिए कभी लालच तो कभी भय दिखाया जा रहा है। यह बात किसानों को भले समझ में नहीं आ रही लेकिन गुरू तो गुरू है, सब जानता है। इसलिए भन्नाया हुआ है। भन्नाए क्यों नहीं? जब जिले में चार विधायक और एक सांसद के होते हुए किसानों को यूरिया की एक-एक बोरी के लिए भटकना पड़ रहा हो, तो उनके चांद पर पहुंचने की बात, अच्छे दिन की तरह कहीं गुम नहीं हो जाएंगे, इसका दावा कौन कर सकता है। आखिर अच्छे दिन के दावे की हवा निकलते तो हम सबने देख ही लिया है। गुरू के गरम होने का दूसरा कारण विकल्पहीनता है।