पत्रकारिता नहीं लोगों का नजरिया बदला है : श्रीकांत

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बक्सर खबर : जिले के युवा पत्रकारों में शामिल हैं श्रीकांत दुबे। अपनी बातों से सबके दिल में जगह बना लेने की कला उनके पास है। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में श्रीकांत ने अपना समय दिया है। इस लिए वे अपने प्रखंड अथवा अनुमंडल में पहचान के मोहताज नहीं। वे तब से लिख रहे हैं जब फैक्स का दौर था। अर्थात परंपरागत पत्रकारिता से आधुनिक युग तक का सफर उन्होंने बखूबी तय किया है। अभी दैनिक जागरण के लिए सिमरी से लगातार काम कर रहे हैं। इस बीच आबो हवा बदली लेकिन श्रीकांत नहीं। बक्सर खबर ने अपने साप्ताहिक कालम इनसे मिलिए के लिए बात की। बहुत से अनुभव साझा किए और कहा पत्रकारिता नहीं बदली। लोगों का नजरिया बदल गया है। न मुश्किलें कम हुई हैं न चुनौतियां। आज के दौर में तो प्रतिस्पर्धा और बढ़ गई है। संवाद भेजने के रास्ते सुगम हुए हैं। संकलन के नहीं। प्रस्तुत है दुबे जी के विचार व उनका परिचय।

खबर बन गई है कमाई का जरिया : दुबे
बक्सर : श्रीकांत कहते हैं। पिछले एक- डेढ़ दशक से हम पत्रकारिता में हैं। पहले के अधिकारी खबर छपने के बाद यह सोचते थे। हमारी साख प्रभावित होगी। अथवा उनके अंदर यह जज्बा होता था। कुछ बेहतर करना है। अत: कार्रवाई होती थी। आज का दौर कुछ और है। जैसे ही किसी विभाग, योजना अथवा भ्रष्टाचार की खबर छपती है। संबंधित विभाग का बड़ा अधिकारी सीधे दोषी के संपर्क में आ जाता है। ऐसी शिकायत मिली है। जांच होगी, कार्रवाई होगी। इसका भय दिखाकर उगाही होने लगती है। इन कारणों से खबरें सच्चाई को उजागर करने का माध्यम नहीं कमाई का जरिया बन गई हैं।
चली कलम तो आना पड़ा मुख्यमंत्री को
बक्सर : कलम जब बोलती है तो उसकी आवाज बहुत दूर तक जाती है। मुझे याद है वह दौर। 2012 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कार्यक्रम जिला मुख्यालय में लगा था। उसी दिन रात में सिमरी के दादा बाबा के डेरा में आगलगी की घटना हो गई। कई लोग आहत हो गए। खबर छपी अगले दिन मुख्यमंत्री को यहां आना पड़ा। ऐसा ही दौर रहा सरपंच संतोष ओझा की हत्या का। लगातार तीस दिनों तक खबर छपती रही। तब तक लगातार अनवरत जब तक अभियुक्त जेल की सलाखों के पीछे नहीं पहुंच गए।
पत्रकारिता जीवन
बक्सर : 2003 में आज अखबार से नई पारी कि शुरुआत की। बबलु उपाध्याय अखबार के स्थानीय प्रभारी थे। उनके सानिध्य में संपादक से मिले और नई जिम्मेवारी मिली। डुमरांव में तब शिवजी पाठक आज के लिए लिखते थे। उनसे भी प्रारंभ के दिनों में बेहतर ज्ञान मिला। इसी दौरान 2005 में दैनिक जागरण से बुलावा आया। जागरण से जुड़ाव हुआ। वह सिलसिला अभी भी चल रहा है। जिसके कारण कहीं और जाने की जरुर नहीं महसूस हुई।
व्यक्तिगत जीवन
बक्सर : श्रीकांत दुबे पंडित स्व. काशीनाथ दुबे के तीसरे पुत्र हैं। 5.12.1976 को उनका जन्म अपने पैतृक गांव में हुआ। सिमरी हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास करने वाले दुबे ने ए एन कालेज पटना से 1996 में बीए की डिग्री हासिल की। गांव आए रोजगार की बाट तलाश रहे थे। इसी बीच शादी भी हो गई। वक्त तेजी से बदलता रहा। दो पुत्र व एक पुत्री के पिता भी हो गए। लेकिन इस बीच मां और पिता जी का स्नेह छीन गया।

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